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आइये दीदी! डर काहे का! कार्तिक के महीने में न बैल ही में दम बचता है और न हरवाहे में। दोनों ही पस्त हैं? अभी तो ये मूड भी नहीं उठायेंगे। रास्ते में मुझे बैलों से बचते आते देख कर संजीवनी बोल पडी। इसकी बातों की कायल तो मैं पहले से ही थी।
संजीवनी कभी मेरे विभाग में ग्राम प्रधान के प्रशिक्षण के लिये आयी थी। आज वह सत्तर गांवों की ब्लाक प्रमुख है। यह जानकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। याद हो आये वे सारे पल जब मैने सोचा था कि वह तो रानी है। उन पुराने संस्कारों में नहीं बल्कि आज के नये अर्र्थो में। कक्षा में कुछ प्रधान महिलाओं के देर से आने पर एक पुरुष ग्राम प्रधान ने जब टिप्पणी की थी अरे ये चूल्हा चउका करने वाली लोग कोटे से प्रधान तो हो गयी हैं तो का परधानी करनी भी आ जायेगी। पुरुष ग्राम प्रधान पक्ष में व्यंग्य हंसी चहक उठी ही थी कि अपमान से तिलमलाई महिलाओँ में से एक कडककर आवाज आयी,आप चुप रहिये परधान जी ! हम पैदाइशी चूल्हा चउका करने वाली नहीं है अपने परिवार के लिए करती हैं। आपकी तरह पाल्टीक्स बाजी और नशा तो नहीं करती। और सुनिये! जैसे जोड तोड करके आपने अपने दरवाजे पर बोलेरो खडी की है, सारा गांव जानता है। मेरा मुंह न खुलवाइये।
मैने उस मुखर महिला को देखा, जिसका चेहरा ओज और आत्म विश्वास से दीप्त था। इस बार के प्रशिक्षण के अनेक मुद्दों में से एक महत्वपूर्ण मुद्दा था- प्रधान पतियों का वर्चस्व, समस्या ये है कि प्रधान महिला हैं, पर उनका पति उन्हें कुछ करने ही नहीं देता। लोग मिलने जायें तो अन्दर भेज देता है यह कहते हुए कि, लोग आये हैं चाय बना लाओ। कुछ लोग सम्मानित करने आये हैं तो पति महोदय माला पहन रहे हैं और प्रधान जी दरबाजे की ओट से देख रही हैं। इस बात पर काफी बहस हुई, कुछ सुझाव भी आये। बात जव संजीवनी के पाले में आयी तो उसने कहा,ऐसा ज्यादा दिन चलने वाला नही। पहले होता था न फिल्मों और नाटकों रामलीलाओं में कि आदमी लोग औरत बनके पार्ट करते थे। पर देखिये जब औरत खुद अपनी पार्ट करने लगी तो वे लोग गायब हो गये। समझ लीजिये वही हाल है प्रधान पतियों का। जिस दिन औरतें अपने अधिकारों को जान लेंगी बस उसी दिन ये सब गायब हो जायेंगे। इस पर खूब ताली बजी। इस तरह प्रशिक्षण के दौरान संजीवनी ने न सिर्फ बढ चढ कर भाग लिया बल्कि अपने व्यक्तित्व की भी छाप छोडती गयी।
वह नयी सोच से लबरेज थी। इतनी समस्याओं के बावजूद आशावान थी। उसे लगता था कि यदि जमीनी स्तर पर काम किया जाये तो गांवों को खुशहाल बनाया जा सकता है। और इसी से सम्बन्धित वह प्रश्न भी पूछती थी। पर इसी टोली में बहुत सी ग्राम परधान थीं जो कम पढी-लिखी थीं। कुछ का दबंगई तो देखने लायक थी। बातचीत में गालियों का खुला प्रयोग, गुटखा खाना और थूकने के लिए बार-बार बाहर जाना। कई बार तो बडी हास्यास्पद स्थिति हो जाती। कोई कोई प्रधान घूंधट में कान में मोबाइल लगाकर देर तक बात करती। कोई सवाल पूछो तो मोनालिसा की मुस्कान। न बात समझें और न किसी सवाल का दवाब दें। लेकिन अपनी बात में एकदम चुस्त दुरूस्त, ए जी! चिन्ता मत करी! हम जूतवा ले आइब। इ बटवा के जूतवा चीपो बा वेस्टो बा अउर कम्फरटेबुलो बा। उन्हें मालूम नहीं था कि पूरी कक्षा सुन रही है। जब घूंघट जरा उठाकर देखी तो जल्दी जल्दी बोलने लगी,ए जी! एकें खुंटिया बाचल बाय। चारज करब त बतियाएब। मोबाइल बन्द करके ब्लाउज में रख ली।
बगल में दूसरी प्रधान बोली-ए परधान जी उ जूता खरीद लीहैं? कातिक आबे से पहिले पैना गढाने वालों में से है ये लोग। आप मैडम जी की बात सुनिये।
पैना गढाने वाली बात थोडी गूढ थी। पूछने पर जो कहानी उभरकर आयी वह इस प्रकार थी। कातिक के महीने में खेती में बडा काम रहता है। तो आम आदमी अक्सर गुस्से में रहता है। किसी बात पर एक पति ने अपनी पत्नी को बैल हांकने वाले पैने से पीट दिया। इतना पीटा कि पैना टूट गया। पत्नी हंस दी और बोली,मार तो मारी ठीक किया। पर पैना क्यों तोड दिया। बताओ भला कातिक मास में कितना अकाज होगा। पति बोलने में पीछे क्यों रहे। बोला,आपनि मरिया आंगेज तुहू धनिया। पैना मो लेबो गढवा। अर्थात प्यारी पत्नी तुम अपनी चोट की चिन्ता करो पैना तो मैं गढवा ही लूंगा।
कक्षा के बाद ग्राम प्रधानों के लिए एक स्टाल लगाया गया था। कोशिश की गयी थी कि उन्नत किस्म के खाद, बीज, फूल और फलों की किस्मों से उन्हें परिचित कराया जा सके और वे खरीद कर उनका प्रयोग भी कर सकें। सभी ग्राम प्रधान बहुत दिलचस्पी से जुटे हुए थे। तभी एक शिकायतनुमा शोर मुझ तक आया कि किसी ने चन्दन और हरसिंगार के सारे पौधे खरीद लिए हैं। पूछने से कोई फायदा नहीं था। देखा तो संजीवनी मुस्करा रही थी। मैं समझ गयी। पर इतने सारे चन्दन और हरसिंगार के पौधों का वह करेगी क्या? यह बात मेरे मन में ही रह गयी। फिर याद आया कि वह अपने गांव में दूसरी बार प्रधान चुनी गयी है। तो वह रानी है, ये उसका चुनाव है कि अपने गांव को चन्दन और हर सिंगार से महकाये? जाने क्यों वह मुझे रानी ही दिखती है खूब लम्बे बाल सुनहरी लचकदार काया लौकी रंग की चिकनकारी की साडी, चेहरे पर सौम्यता, वाणी में सम्मोहन।
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