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आम के बगीचे में पूरे गांव के लोग जमा हो गए थे। सबों के चेहरे पर अजीब उत्साह झलक रहा था। सभी जमीन पर बैठ गए। आसपास में बच्चे खेल रहे थे। कुछ दूरी पर खडी हो कर महिलाएं देख रही थीं। उनकी आंखों में उत्सुकता थी। लोग आपस में कानाफूसी कर रहे थे, प्रधान जी अभी तक आए नहीं। जबतक वह आ नहीं जाते, तबतक बात आगे बढ नहीं सकती। इसी बीच सिर पर पगडी बांधे प्रधान जी आते नजर आए। यह थी गांव की पंचायती। यहां पहुंचे सारे लोग लिटा नामक युवक के भाग्य का फैसला करनेवाले थे।
अपने सात भाइयों में सबसे छोटा लिटा जवान हो गया, लेकिन कोई काम-धाम करता नहीं। उसके सभी भाई दिनों रात खेतों में मेहनत करते हैं तो किसी तरह घर-परिवार के लिए दोनों शाम की रोटी का जुगाड हो पाता है। आखिर उसे बैठा कर कबतक वे खिलाते रहेंगे। यही सवाल गांव वालों के पास था। या तो लिटा अपने भाइयों के साथ काम करे या फिर अपना रास्ता देखे। प्रधान जी ने गंभीर आवाज में कहा-लिटा, आज हम यहां तुम्हारे मसले को लेकर ही जमा हुए हैं। तुम्हारे भाइयों की शिकायत यह है कि तुम कोई काम नहीं करते। तुम्हारा क्या कहना है? लिटा ने कहा-दादा, काम तो मैं करता हूं, लेकिन मेरा काम मेरे भाइयों को पसंद ही नहीं आता। तो क्या करूं? उसका एक भाई धीरू खडा होकर बोला-दादा, यह गलत कहता है। असली बात तो यह है कि इसे काम में मन लगता ही नहीं। वह कहावत है न कि ठेल ढकोल कर पेड पर चढाया जाएगा तो उसका तोडा हुआ फल कितना मिलेगा? दूसरा भाई बोला-दादा, लिटा हमारे साथ अब नहीं रह सकता। मेरा विचार है कि अब इसे अलग कर दिया जाए। प्रधान जी ने लिटा से पूछा-लिटा, तुम्हारा क्या विचार है? क्या तुम्हें अलग कर दिया जाय? लिटा बोला-दादा, हम भी नहीं चाहते कि अपने भाइयों की मर्जी से रहें और इनका एहसान झेलते रहें। हमको अलग कर दो। प्रधान जी ने सवाल रखा-ठीक है, तुम्हें अलग कर दिया जाता है, लेकिन सवाल यह है कि तुम्हारी बूढी मां किसके साथ रहेगी? लिटा ने कहा- अपनी बूढी मां को हम अपने साथ रखेंगे, दादा। जैसे भी होगा, हम अपने और अपनी मां के लिए भोजन-पानी का इंतजाम कर लेंगे। ऋ—-ऋ—-ऋ—-ऋ सात भाइयों के बीच संपत्ति का बंटवारा हो गया। लिटा के हिस्से में बूढी मां और एक बूढी गाय मिली। वह अगल-बगल के गांवों में जा कर मजदूरी करने लगा।
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