Menu
blogid : 2262 postid : 195

विल यू बी माइ वेलेंटाइन..(पार्ट-2):- Hindi Story

कहानियां
कहानियां
  • 120 Posts
  • 28 Comments

परंतु, जैसे गेहूं के साथ घुन चला आता है, उसी प्रकार कवयित्रियों के साथ कई रसिक किस्म के कवि भी चले आए। रीतिकाल के प्रवर्तक महाकवि केशव ने कविता को रसिक-प्रिया कहा था। निश्चित रूप से उनके काल में बडे-बडे रसिक रहे होंगे जो कविता से भीषण प्रेम करते रहे होंगे। इसीलिए महाकवि ने कविता का यह नामकरण किया होगा। परंतु आधुनिक काल के रसिक और भी बडे धुरंधर निकले। ये कविताओं से कम, कवयित्रियों से अधिक प्रेम करते थे। हम भी अपनी पत्रिका के माध्यम से इन महान प्रेम-धुरंधरों की श्रेणी में सम्मिलित होने का प्रयास करने लगे।

Read:21 टिप्स हर कपल के लिए जरूरी


लेकिन िकस्मत अब भी हमारे साथ न थी। उपर्युक्त वर्णित महारथी हमारी पत्रिका के माध्यम से, हमारे ही सामने, हमें ही ठेंगा दिखाने लगे। मिसाल के तौर पर पिछले दिनों एक बहुत ही बडे कवि से भेंट हुई। इस बडे भाई को इतने सम्मान और पुरस्कार मिल चुके थे कि इन्हें खुद भी उनकी गिनती याद नहीं थी। कवि महाराज ने अपने ताजा काव्य-संग्रह की दो प्रतियां हमें समीक्षा करने के लिए प्रदान कीं। हमारा हृदय गदगदा उठा। हमने भी श्रद्धावश उन्हें पत्रिका के कुछ अगले-पिछले अंक भेंट किए। दो-चार दिन बाद कविराय साहब का फोन आया कि अब आपको काव्य-संग्रह की समीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अतीव रससिक्त वाणी में पत्रिका में छपे कुछ बेहद ख्ाूबसूरत नामों की चर्चा करते हुए फरमाया कि अब वे उनमें से ही किसी से यह समीक्षा करवाएंगे। कृपया उन ख्ाूबसूरत नामों के ख्ाूबसूरत फोन नंबर उन्हें दे दिए जाएं। हमने रकाबत में झुलसते हुए पत्रिका की नीति के बहाने अपनी कोफ्त छुपाने की नाकाम कोशिश की और असमर्थता जता दी। कहा कि आप स्वयं पत्रिका में प्रकाशित पतों पर संपर्क कर लें। तकरीबन महीने भर बाद बडे मियां ने फिर हमारे दूरभाष-यंत्र की घंटी खडकाई और दिलीप कुमाराना स्टाइल में बोले कि यार महीना हो गया.. फलां.. फलां को किताब भेजी.. कोई जवाब ही नहीं आया..। अब हम मोतीलाल की तरह चुन्नी बाबू स्टाइल में देवदास को दिलासे के सिवा और दे ही क्या सकते थे!


इसी प्रकार एक अन्य शायरा-शनास  हजरत ने भी पत्रिका में छपे एक तीर-ए-हुक्मी नाम से घायल होकर निहायत ही सरगोशी से उसके बाबत पूछताछ की। जब किबला को इल्म हुआ कि मोहतरमा एक यूनिवर्सिटी से दस बरस पहले सबुकदोश हो चुकी हैं और िफलहाल अमेरिका में अपने सहिबजादे के साहिबजादों  के पास रिहायश फजीर हैं तो साहिब का गुल्म-ए-ख्ाुलूस खिलने से पहले ही मसला गया।

Read:मैने एक बार करीब से महसूस किया था…..


यही नहीं, एक रसिक ऐसे भी टकराए जो प्रकट रूप में तो हर छपी किताब साहित्य नहीं होती और हर लिखी गई चीज रचना नहीं होती, जैसी धधकती-भभकती परिचर्चाएं चलाए हुए थे, परंतु हमारी पत्रिका में छपी एक नवयौवना कवयित्री की भेजी ऐसी गजल छाप बैठे, जिसके वजन, कािफये और रदीफ की बात तो छोडें, एक मिसरे में आठ अल्फाज थे तो उससे अगले में तीन और उससे अगले में ग्यारह। गजल से ज्यादा गजलगो  की तस्वीर से प्रभावित हो जाने वाले ये सज्जन सबको पीछे छोड सर्वोच्च कोटि का रसिक बन बैठे।


और तो और.. इन बुढऊ रसिकों को धूप में सफेद किए अपने बालों तक का ख्ायाल  न रहा। महाकवि केशव तो पनघट पर खडी पनिहारिन चंद्रबदन-मृगलोचनी कन्याओं द्वारा श्वेत केशों के कारण बाबा कह दिए जाने पर केशव केसन अस करी.. कहते हुए आहत और शर्मिदा हो उठे थे, परंतु इन रसिकों के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं आती थी। क्योंकि ये शनिवार तक आते-आते अधेड जरूर हो जाते थे, लेकिन हर रविवार को ख्िाजाब-बाबा के आशीर्वाद से पुन: युवा हो उठते थे।

रसिकों की इस लूट-खसोट में, हम कहीं के न रहे। हमारी हालत सलमान भाई जैसी हो गई। हम कवयित्रियां तैयार करते, पर उन्हें झटक कोई और ले जाता।

तब से लेकर आज तक.. हमें कभी मौका ही नहीं मिला कि हम किसी को कह पाएं.. विल यू बी माइ  वेलेंटाइन।  काश! हम पच्चीस साल बाद पैदा हुए होते! वैसे हम आज भी पगडी रंगवाने के बहाने अधलिखे दोहे या शेर पगडी के पल्ले में बांध कर किसी रंगरेज या रंगरेजिन को दे आते हैं और वापसी पर उसके पूरा निकलने की आस लगाए बैठे रहते हैं।

Read:‘इश्क होता नहीं सभी के लिए’

पुराने प्यार की याद कभी ना कभी तो आती है


Tags: valentine’s day, valentine’s week, love and romance, planning a date, how to propose a girl for love, विल यू बी माइ वेलेंटाइन, वेलेंटाइन

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh