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क्या काला जादू सच में होता है ? (पार्ट-1)- Hindi story

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पिछले बीस वर्ष से इस दिल्ली में दुनी चंद जी हमारे पडोसी थे। उनकी पत्नी शांता मुझसे उम्र में बडी थीं और मैं उन्हें शांता  बहन कह कर बुलाती थी। उनके बच्चे टिंकू, बबलू और मधु मेरी बेटी मनीषा के साथ खेलते थे।

हम पति-पत्नी काम पर जाते तो पडोसियों का बडा सहारा था। दोनों परिवार एक-दूसरे के दुख-सुख में साथ देने वाले थे। हमारे घर की एक चाबी उनके पास ही रहती थी।

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मनीषा और मधु में अकसर झगडा होता लेकिन जल्दी ही मेल भी हो जाता। बच्चों की खातिर कभी परिवारों में मनमुटाव की नौबत नहीं आई। यदि मुझे उनकी कोई बात असंगत लगती तो मैं दिल से नहीं लगाती। मनीषा स्कूल से जल्दी आती तो शांता  बहन उसे अपने पास बिठा लेतीं। दुनी चंद जी का चांदनी चौक में कपडे का कारोबार था। टिंकू और बबलू बडे होकर कॉलेज की पढाई पूरी करके पिता के कारोबार में लग गए थे। इतने बडे होने पर भी वे हमारे लिए टिंकू और बबलू ही रहे।

मधु ने बीए पास ही किया था कि उसके विवाह की तैयारियां शुरू हो गई। उसकी शादी हुई तो दोनों भाइयों के लिए कन्याएं देखी जाने लगीं। देखते ही देखते शांता बहन जी दो बहुएं घर ले आई। मनीषा विवाह के लिए हां ही नहीं कर रही थी। वह एम.बी.ए. कर रही थी।

शांता  बहन को दोनों बहुएं प्यारी थीं। पढी-लिखी, सुघड-सयानी और मिलनसार। बडी का नाम नीरू, छोटी का सोनिया। मनीषा की सोनिया से दोस्ती हो गई थी। नीरू  का बेटा बिट्टू मनीषा को छोटी बुआ कहता। वह भी उससे खूब लाड लडाती।

समय आने पर सोनिया ने एक बच्ची को जन्म दिया। घर में उतनी ही खुशी  मनाई गई, जितनी बिट्टू  के पैदा होने पर।

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दोनों बहुओं ने घर संभाल लिया था। शांता  बहन सुबह मंदिर जातीं और दोपहर को टी.वी. पर सास-बहू वाले सीरियल देखतीं। मुझे उनके घर का सुखद माहौल देख कर बडी खुशी होती। एक दिन सोनिया हमारे घर आई तो उसका चेहरा कुम्हलाया था। सदैव प्रसन्न दिखने वाली लडकी के चेहरे को परेशान सा देख मैं कुछ बेचैन हो गई। लेकिन मैंने अपनी उत्सुकता को छिपा लिया। सोनिया को बैठने के लिए कहा तो उसने अचानक पूछा, आंटी, क्या आप जादू-टोने, भ्रम-वहम में यकीन रखती हैं?

पास ही बैठी मनीषा बोल पडी, सोनिया भाभी, मेरी मम्मी तो किसी भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करतीं।

कमरे का माहौल सोनिया के चेहरे जैसा ही उदास था, बिजली काफी देर से गायब  थी।


आंटी, आपसे एक बात करना चाहती हूं, सिसकती हुई सोनिया बोली, आंटी, आजकल हमारे घर में एक औरत आती है। वह नीरू भाभी के मायके के पास ही कहीं रहती है। जब से वह हमारे घर आने-जाने लगी है, घर का माहौल बिगड गया है।

मैं नीरू भाभी को बडी बहन मानती हूं। आंटी, आप तो जानती ही हैं कि नीरू भाभी को पिछले दो महीने से हलका बुखार रहता है। कई टेस्ट हुए, लेकिन दवाओं का असर नहीं हुआ। एक दिन नीरू भाभी की मम्मी उस औरत को लेकर हमारे पास आई। कहने लगीं, यह बडी पहुंची हुई भक्तिन है। माता जी और नीरू  भाभी ने उनके आगे माथा टेका। उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाया और बादाम डाल कर दूध पिलाया। जब वह जाने लगी तो माता जी ने उसके हाथ पर कुछ रुपये भी रख दिए..।

सोनिया बात करते-करते एकाएक चुप हो गई। फिर क्या हुआ? मनीषा ने उत्सुक होकर पूछा। आंटी, उस औरत की सूरत और हाव-भाव मुझे अच्छे नहीं लगे और मैंने उसे प्रणाम नहीं किया। उस स्त्री ने मुझे तिरछी निगाहों  से देखा। जाते हुए वह सबके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देने लगी। मैं दूर खडी सब देखती रही..।

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