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यथेष्ठ चार-छह महीने का था। आंगन में फुदकती गौरैया, छत की मुंडेर पर बैठे कबूतरों, दीवार पर रेंगती छिपकली, आकाश में चमकते चांद और बगीचे में खिले फूलों को देख कर मचलने लगता। उसकी बायोलॉजिकल क्लॉक बताती कि शाम होने को है और अब उसे बगीचे में होना चाहिए। वह चिडचिडा कर या रोकर जता देता कि उसे बंद घर से निकलना है। केबिल फैक्टरी में कार्यरत उसका पिता ढाल सिंह शाम गहराने पर लौटता है। अंग्रेजी स्कूल की प्राध्यापिका मां हरिप्रिया घर-स्कूल के बीच थक जाती है। जिद करने पर कई बार पिटाई हो जाती, दिन भर स्कूल में परेशान रहती हूं, अब तुम्हें घूमना है। वक्त पर खाना न बना तो बाकी लोग तंग करेंगे। यथेष्ठ तुम बडे कब होगे?
यथेष्ठ नहीं समझ पाता कि क्यों उसे बडा होना चाहिए, क्या मां को सहूलियत देने के लिए! हरिप्रिया उसे बग्ाीचे में ले जाती तो वह फूल छूने को मचलने लगता। यथेष्ठ, कांटे हैं, हरिप्रिया उसका हाथ खींचती। घुटने चलने लगा तो चींटियों को पकडने का प्रयास करने लगा, यथेष्ठ, चींटा काट लेगा, रोकने पर वह रोने लगता। वह चुप कराने के लिए फोन पर गाने लगा देती, सुनो, मुझे कापियां चेक करनी हैं। वह धुनों पर मटकना सीख गया था। लोरी गाकर सुलाने की फुर्सत हरिप्रिया को कहां! ढाल सिंह आपत्ति करता, फोन से बच्चे को नुकसान हो सकता है।
तुम तो फैक्टरी जाने और टीवी देखने के सिवा कुछ करते नहीं, इसलिए सलाह मत दो। मुझे भी आराम चाहिए, हरिप्रिया चिढ जाती।
..दो साल का हो गया यथेष्ठ। अब वह तितलियों-गिलहरियों के पीछे भागता और दौडने के चक्कर में गिर पडता। रोता हुआ मां के पास भागता तो हरिप्रिया अकुला जाती, कर लिए न कपडे खराब? यथेष्ठ कितनी बार कपडे बदलूं? अब तुम्हें प्ले स्कूल में डाल दूंगी, थोडे तो एटिकेट्स सीखो।
ढाल सिंह आपत्ति करता, यह उम्र तितली और गिलहरी के पीछे भागने की ही है।
एटीकेट सीखने की भी तो है। इस उम्र में बच्चे जल्दी सीखते हैं।
तो घर में पढाओ। प्ले स्कूल में पशु-पक्षी की पहचान ही तो कराई जाती है..
और भी बहुत कुछ सिखाया जाता है, सचमुच!
हां, अक्षर ज्ञान, गिनती, चित्रकारी, कल्चरल एक्टिविटीज.., यथेष्ठ को प्रकृति से नहीं, चित्रों से सीखना होगा कि यह संतरा है या शेर है। लाल रंग है या पीला..।
हरिप्रिया नहीं जान पाई कि कक्षा एक तक आते-आते यथेष्ठ थका, सुस्त और चिडचिडा हो चुका था। उसकी छुट्टी जल्दी होती, जबकि हरिप्रिया की क्लास डेढ बजे तक चलती। वह यथेष्ठ को स्टाफ रूम में बिठा देती। वह मेज पर सिर रखे-रखे सो जाता। छुट्टी होते ही हरिप्रिया उसे हडबडी में जगाती और स्कूटी के पीछे थैले की तरह लाद देती। स्कूटी स्टार्ट करते हुए समझाती, मुझे अच्छी तरह पकड लेना, वर्ना गिर जाओगे। घर आकर वह फ्री होना चाहता तो मां चिल्लाती, खाना खाकर आराम कर लो, फिर होमवर्क करना होगा।
यथेष्ठ वक्त की पाबंदी का अर्थ नहीं जानता। खाता कम, प्रश्न ज्यादा पूछता। क्या, कैसे, क्यों, कब, कहां? चांद कहां से आया? तारे कैसे जन्मे? बर्ड घोंसला क्यों बनाती है? मां को विस्तार से समझाने की फुर्सत नहीं है। तंग आकर हरिप्रिया तौबा कर लेती, यथेष्ठ तुम प्रश्न बहुत करते हो।
ढाल सिंह कहता है, इसीलिए कहता हूं कि सिब्लिंग जरूरी है। दो बच्चे आपस में व्यस्त हो जाते हैं, मां को परेशान नहीं करते।
एक तो पल नहीं रहा, दूसरा बच्चा! हरिप्रिया यथेष्ठ से बोली, तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है?
कुछ अच्छा नहीं लगता
क्या अच्छा नहीं लगता?
पढाई अच्छी नहीं लगती।
पढना अच्छा क्यों नहीं लगता?
बोर हो जाता हूं।
बोर होना क्या होता है?
नहीं मालूम।
वह कुछ काम अपने ढंग से करना चाहता है, ढाल सिंह बोला, बच्चे को फ्री छोडो। यथेष्ठ शाम को बच्चों के साथ खेला करो।
हरिप्रिया ने सख्ती से विरोध किया, बच्चे उपद्रवी हैं। यह वैसे ही इतना थका होता है, खेलेगा तो और थक जाएगा। फिर पढाई नहीं करना चाहेगा। मेरी खिल्ली उडेगी कि स्कूल की बेस्ट टीचर का बच्चा फिसड्डी है।
माता-पिता की बहस से परेशान यथेष्ठ बोला, मेरे लिए एक पपी ले आओ। मैं बाहर खेलने नहीं जाऊंगा, पढूंगा भी, बोर नहीं होऊंगा।
हरिप्रिया को यथेष्ठ की मांग बेतुकी लगी, यथेष्ठ, तुम्हारी बोरडम खत्म करने के लिए मैं मवेशी नहीं पालने दूंगी।
मवेशी क्या होता है? बच्चा बोला।
जानवर।
पर मुझे चाहिए।
उसे खिलाने-नहलाने का टाइम किसके पास है? तुम्हें इन्फेक्शन होगा, काट ले तो और मुसीबत। फिर मुझे छुट्टी लेनी पडेगी, जो खुर्राट प्रिंसिपल नहीं देगी।
यथेष्ठ की चिडचिडाहट बढ रही है। सुबह उठाती है तो रोने लगता है, होमवर्क कराती है किताब पर सिर रख कर सोने लगता है। बारह का पहाडा दस बार लिखने की सजा दी है तो स्टूल पर चढ कर रोशनदान में रखे घोंसले को देखने की कोशिश कर रहा है।
यथेष्ठ!
मां, नेस्ट देखो न, कितना डिफरेंट है।
मां ने उसके कान उमेठ दिए, इसे हटा देती हूं, घर खराब होता है, तुम्हारा दिमाग्ा भी..
मां ने बांस से घोंसला खींच लिया। कपास के टुकडे, ऊन के रेशे, कपडों की कतरन.., यह बिलकुल अलग था। खतरा भांप कर गिलहरी रोशनदान से भाग गई। घोंसला गिरा, उसमें छोटा सा बच्चा था। हरिप्रिया दंग हो गई।
गिलहरी घोंसले में बच्चा देती है?
यथेष्ठ कान उमेठे जाने की पीडा भूल कर उत्सुक हो गया, ममा कितना क्यूट है न!
लेकिन मर गया है।
बच्चे का दिल टूटा, मां, तुमने मारा उसे।
मुझे क्या पता था कि इसमें बच्चा है!
हरिप्रिया ने घोंसले को डस्टबिन में डाला। व्यग्र यथेष्ठ ने नजर बचा कर काग्ाज की सहायता से डस्टबिन से बच्चे को निकाल लिया और उसे स्टूल पर रख दिया। चींटियों को उनका आहार मिल गया।
मां ने देखा तो कान खींचे, बेवकूफी में बहुत मन लगता है तुम्हारा?
हरिप्रिया यथेष्ठ के लिए ऐसा एजेंडा चाहती है कि हर पल का उपयोग हो। उसे नहीं पता था कि वह बच्चे की कोमलता, निर्मलता और ताजगी को खत्म कर रही है। उसे मशीन बना रही है। बच्चों के साथ नहीं खेलना, पपी नहीं पालना, खिडकी से बाहर नहीं देखना, कोर्स के अलावा कोई सवाल नहीं करना..। अच्छे बच्चे की तरह स्कूटी में पीछे बैठो, स्टाफ रूम में इंतजार करो। फिर घर लौटो, होमवर्क करो, ठीक समय पर खाना खाकर सो जाओ। यथेष्ठ को अनुमान भी नहीं था कि उसकी जिंदगी में चमत्कार होने वाला है।
स्कूल से लौट कर देखता है कि बैकयार्ड में एक कबूतर फडफडा रहा है। छत पर सूखते अनाज के लालच में कबूतर मुंडेर पर आ जाते हैं। लेकिन जाली से बंद बैकयार्ड में गौरेया के अलावा कोई नहीं आता। छत की सीढियां बैकयार्ड में आकर खत्म होती हैं, वहीं से पता नहीं कैसे वह सलेटी विहग आ गया।
मां, कबूतर..
यथेष्ठ की तेज आवाज सुन कर कबूतर की आंखों में आतंक बढ गया। उसने उडने की कोशिश की, मगर न उड सका। किसी ने एयर गन चलाई थी, छर्रा पंख के पास लगा। बाकी कबूतर उड गए, लेकिन इसका पंख लटक गया। आत्मरक्षा के लिए डगमगाता सीढियों से लुढकता बैकयार्ड में आ गिरा।
इसके पंख में खून है। इसे किसने मारा? हरिप्रिया से डर कर कबूतर कोने में चला गया। यथेष्ठ सतर्क हुआ, मां, वह डर रहा है। उसके पास मत जाओ।
हां, यह घायल है, अभी इसे शांत बैठने दो। तुम भी वहां मत जाना।
तुम उसे भगाओगी तो नहीं।
नहीं। हाथ-मुंह धो लो। भूख लगी है।
यथेष्ठ ने आज्ञा का पालन किया। वह मां को नाराज नहीं करना चाहता। खाना खाते हुए ध्यान आया। मां उसे भी भूख लगी होगी।
चावल के दाने डाल दूंगी।
मैं डालूंगा।
तुम खाना छोडते हो। यदि अच्छे बच्चे बन कर खाना खाओगे तो दाना डालने दूंगी।
यथेष्ठ ने मन से खाना खाया और व्यग्रता दिखाते हुए बैकयार्ड में गया और दाने छितरा दिए। कबूतर सहमा हुआ बैठा रहा। यथेष्ठ ने पुचकारा तो और सहम गया। उसने मां से कहा, मां, कबूतर को भूख नहीं है।
खा लेगा, अभी डरा हुआ है। तुम उसे तंग मत करना, मां की आवाज आई।
बिल्कुल नहीं, इडियट हूं क्या?
अच्छा, अब सो जाओ। फिर होमवर्क करना है न, मां ने प्यार से कहा।
मुझे नींद नहीं आ रही
होमवर्क करते समय तो बहुत आती है।
होमवर्क कर लूंगा, मिस्टेक नहीं करूंगा। ताजगी और स्फूर्ति से भरा है यथेष्ठ। कहां तो स्कूल से लौट कर थके भाव में बैग एक ओर फेंकता था और कहां आज इतना चुस्त दिख रहा है। हरिप्रिया को बच्चे की अदा अच्छी लगी, मिस्टेक करोगे तो पिटाई होगी।
कुछ देर झपकी लेकर उठी हरिप्रिया तो यथेष्ठ को होमवर्क करते पाया। चुपचाप उसके पीछे जाकर खडी हो गई। उत्तर सही लिख रहा है, कोई मिस्टेक नहीं, राइटिंग भी अच्छी। ऐसे तो बडी ग्ालतियां करता है, कुछ कहने पर आडी-तिरछी रेखाएं खींच कर अरुचि जाहिर करता है, लेकिन आज तल्लीन है। हरिप्रिया पीछे खडी है, पर इसे पता तक नहीं। हरिप्रिया वापस रसोई में चली गई। यथेष्ठ ने वहां आकर चौंका दिया, मैंने सब कर लिया। चेक कर लो।
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