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ऑफर एक्सेप्ट कर लूं या नहीं (पार्ट-1)- Hindi Story

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thikingअच्छा तो ये ऑफर एक्सेप्ट कर लूं, पूनम ने लाइट बुझाते हुए पूछा तो नींद से बंद होती पलकों को सप्रयास खोलते हुए प्रत्यूष ने तुरंत कहा, देख लो, अगर ठीक लगे तो कर लो।

घडी रात के ग्यारह बजा रही थी। आधे घंटे पूर्व तो बजाज की पार्टी से वापस लौटे थे। प्रत्यूष आते ही बिस्तर पर लेट गए, लेकिन पूनम को किचन समेटने और अगली सुबह की तैयारी करने में कुछ देर लगी। नींद और थकान अपना असर दिखा रही थी, लेकिन बात जरूरी थी और निर्णय आज ही लेना था। उसने फिर लाइट जला दी। प्रत्यूष प्लीज, मेरी हेल्प करो, मुझे कल सुबह ही जवाब देना है। प्रतिष्ठित कंपनी है, पैकेज भी अच्छा है। ग्रोथ और एक्सपोजर दोनों है। पूनम ने पति की बांह झिंझोडते हुए उसे नींद से जगा दिया।

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अब तक प्रत्यूष की नींद भी उड चुकी थी। उसने तकिए को गोद में रखते हुए पत्नी को प्यार से निहारा, पूनम यहां भी तुम्हारा प्रोफाइल अच्छा है। साल-दो साल में प्रमोशन भी मिल जाएगा। तुम्हारा ऑफिस मेरे रास्ते में पडता है। आना-जाना साथ में हो जाता है। तुम सोच-विचार कर फैसला करो।


ऐसा नहीं था कि पूनम आने वाली दिक्कतों से अनजान थी, किंतु उज्ज्वल भविष्य की सुनहरी आभा ने उसे उत्तेजित कर रखा था। वेतन में पूरे तीन लाख सालाना की वृद्धि किसे आकर्षित नहीं करेगी? पैसों के लिए कुछ त्याग तो करना ही पडेगा। फिर यह सब वह प्रत्यूष के लिए ही तो चाहती है। कब तक किराये के मकान में रहेंगे? कब तक हर मौसम बाइक पर चलेंगे? एक घर और कार तो चाहिए ही। फिर जब बच्चे होंगे तो..?


पूनम की पलकों में सावन घिर आया। उसके साथ जिन सहेलियों की शादी हुई थी, सब मां बन चुकी थीं, लेकिन पूनम के पास बच्चे के लिए समय नहीं था। अभी न तो प्रत्यूष का और न ख्ाुद उसका करियर सही मुकाम पर पहुंचा था। हालांकि दोनों मिलकर ठीक-ठाक कमा लेते हैं, लेकिन भविष्य के लिए बचत भी तो जरूरी है। आजकल पंद्रह-बीस हजार की नौकरी में घर के खर्च ही निकल जाएं, वही बहुत है। बचत कैसे संभव है? ऐसे में बच्चे के बारे में भी कैसे सोचा जा सकता है? फिर परिवार की भी कुछ अपेक्षाएं थीं। देखो पूनम, मैं अपना कोई विचार तुम पर थोपना नहीं चाहता। तुम स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हो। विश्वास रखो, तुम्हारे हर फैसले में मैं तुम्हारा साथ दूंगा, प्रत्यूष ने एक तरह से उसे समर्थन देते हुए कहा और पलटकर फिर सो गया। लेकिन पूनम के मन में अब भी संशय था। एक ओर इंसेंटिव्ज और सुविधाएं उसे लुभा रही थीं। कंपनी की गाडी घर से ले जाएगी, ऑफिस आने-जाने केलिए बार-बार प्रत्यूष का मुंह नहीं ताकना होगा। वेतन के अतिरिक्त एक लाख सालाना इंसेंटिव भी है। जॉइन कर लेना चाहिए।


पूनम ने चादर ओढते हुए लाइट बुझा दी। पूरी रात वह ठीक से सो न सकी। प्रत्यूष भी ऊहापोह में रहा। सुबह होते ही पूनम ने फैसला सुनाया, प्रत्यूष मैं कंपनी को मेल भेज रही हूं। शायद अगले सप्ताह तक जॉइनिंग आ जाए।

सुबह वैसे भी आपाधापी रहती है। पूनम को साढे नौ पर ऑफिस पहुंचना होता है, जबकि प्रत्यूष का समय ग्यारह बजे शुरू होता है, लेकिन पत्नी की ख्ातिर वह भी नौ बजे घर छोड देता है। इसके बावजूद पूनम रोज ऑफिस देर से पहुंचती है, जबकि प्रत्यूष को रोज डेढ घंटे फालतू बैठना पडता है। हालांकि इस व्यवस्था से पेट्रोल और किराये के पैसे जरूर कम होते हैं। प्रत्यूष इसे बचत कहता है, पूनम इसे विवशता मानती है, क्योंकि लगभग रोज उसकी हाजिरी में लेट मार्क लग जाता है।


प्रत्यूष संतोषी प्रवृत्ति का युवक है। वह अपनी पंद्रह-सोलह हजार की नौकरी में ही खुश है। इसका कारण यह है कि काम मन-मुताबिक है और काम के घंटे भी संतोषजनक हैं। यद्यपि उसने व पूनम ने साथ ही नोएडा से एम.बी.ए. की डिग्री ली थी। दोनों का प्रेम विवाह था, जिसमें दोनों पक्षों की पूर्ण सहमति थी।

पूनम को महत्वाकांक्षा विरासत में मिली थी। उसके पिता राम शरण जी प्राय: जमाई को भी प्रोत्साहित करते, बेटा आज के जमाने में प्रमोशन उसी को मिलता है जो रेस में आगे रहता है। एक नौकरी में रहते हुए दूसरी जगह आवेदन करते रहो, तभी आगे बढ सकोगे। जहां भी मौका मिले, चले जाओ…, इसके बाद वे अपने संपन्न मित्रों के काबिल पुत्रों का बखान करने लगते जो या तो विदेश में बस चुके हैं या फिर मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर या चेन्नई में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। प्रत्यूष लिहाज में ससुर जी की बातों पर चुप रह जाता, लेकिन सच यह है कि उसे इस चूहा दौड में कभी दिलचस्पी नहीं रही।


रामशरण जमाई की उदासीनता पर कोई टिप्पणी नहीं कर पाते, लेकिन अकसर बेटी को ही समझाते। पूनम ने विवाह के प्रारंभिक दिनों में पति को नौकरी बदलने को प्रेरित किया था, लेकिन बाद में वह पति के मन को समझ गई और फिर इस विषय में कोई बात नहीं छेडी।

वैसे भी उनकी गृहस्थी में कोई परेशानी नहीं थी। सीमित आमदनी में उनका सीमित परिवार चल रहा था। वह यह भी जानती थी कि कामनाओं का तो कहीं अंत नहीं है। बहरहाल, शायद पिता का ही प्रभाव था कि पूनम ने तुरंत नई नौकरी जॉइन कर ली। अब उसे सुबह सात बजे घर छोडना पडता था। स्टाफ बस से उसे ऑफिस पहुंचने में दो घंटे लगते थे। पहले दिन वह प्रत्यूष से एक घंटे देर से घर पहुंची। लेकिन उस दिन नई नौकरी का शुरूर था, प्रत्यूष ने भी उसके उत्साह को और बढाया और दोनों ने इस खुशी में रेस्तरां जाकर शानदार डिनर किया। रात दोनों की ही आंखों में कटी। दोनों बेहतर भविष्य के सपने खुली आंखों से देखते। नया घर, गाडी, बच्चे..।


पत्नी की सफलता से प्रत्यूष भी अभिभूत था। उसी उत्साह में उसने भी कई जगह आवेदन कर दिए। दो-तीन महीने बाद ही उसे भी एक शानदार नौकरी मिल गई। कंपनी की ओर से एक फ्लैट और गाडी भी मिली। इस नौकरी में उसे कभी-कभी दूसरे शहर भी जाना पडता था।

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