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मेरे लिए तो लव एट फर्स्ट साइट था … (पार्ट-2) – Hindi story

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इस कहानी का पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें

सुलेखा की स्पष्टता से शैलेश खुश हुआ। यह लडकी अब सतर्क ही नहीं, सुरक्षित भी है। शैलेश के घर में शादी के लिए दबाव पडने लगा था। शैलेश ने हामी भर दी और एक साल के भीतर ही धूमधाम से उसकी शादी हो गई। पत्नी मनीषा स्कूल में संगीत पढाती थीं। रिसेप्शन पर सुरेखा ने मनीषा से कहा, शैलेश बहुत सीधे व्यक्ति हैं मनीषा, आप भाग्यशाली हैं.., थोडी ही देर में दोनों घुल-मिल गई।

समय पंख लगा कर उडने लगा। सुरेखा ने रिसर्च शुरू कर दी थी। फिर कॉमनवेल्थ फैलोशिप लेकर कैंब्रिज चली गई। अब महीने में एकाध चिट्ठी आती। एक दिन मनीषा बोली, शैलेश अब से आप घर में सिगरेट न पिएं।

कोई बात नहीं, बाहर पी लूंगा, मगर क्यों? इसलिए कि आप पापा बनने वाले हैं और सिगरेट का धुआं बच्चे के लिए अच्छा नहीं।

शैलेश को तो मानो जमाने भर की खुशियां मिल गई हों। उसने मनीषा को आलिंगन में भर लिया। …इस बीच बच्चे की खुशी में वह जैसे सुरेखा को भूल ही गया। दो साल बाद वह लौटी तो शैलेश की बेटी सवा साल की हो रही थी। शैलेश ने कहा, कब आओगी मेरी बिटिया रीना से मिलने?

संडे मिलते हैं, सुरेखा ने सहजता से कहा। ठीक है। कॉफी हाउस में सुरेखा ने सिगरेट ऑफर की तो शैलेश ने यह कहते हुए मना कर दिया कि अब घर में बच्चा है। तुम भी आओगी तो छत पर जाकर पीनी होगी।

सुरेखा ने संडे की पूरी दोपहर सिगरेट नहीं पी। शैलेश ने पूछा, छत पर जाओगी? उसने मना कर दिया। रीना के लिए ढेरों खिलौने लाई थी। आते समय मनीषा ने कहा, थैंक्स, सिगरेट नहीं पीने के लिए। प्लीज सुरेखा इसे बंद ही कर दो। हंसती हुई सुरेखा बोली, ये वादा नहीं कर सकती।

कभी छुट्टी होती तो वह रीना से खेलने पहुंच जाती। कभी-कभी शैलेश व मनीषा उसे सुरेखा के पास छोड कर शॉपिंग पर निकल जाते। सुरेखा भी व्यस्त हो रही थी। देश-विदेश में कॉन्फ्रेंस में जाती रहती। दो किताबें भी पब्लिश हो चुकी थीं। कुछ साल और बीते। सुरेखा यूनिवर्सिटी में रीडर बन गई थी। शैलेश से मुलाकात कम ही होती, लेकिन रीना को फोन करना न भूलती। मनीषा ने देखा, सुरेखा कमजोर होती जा रही है। बाल सफेद होने लगे। शैलेश मजाक में कहता, अब तो शादी कर लो, बाल सफेद होने लगे हैं और सुरेखा का जवाब होता, शादी के लिए समय कहां है।

मनीषा ने एक बार कहा, बच्चे नहीं होंगे तो सिगरेट कम कैसे होगी?

सुरेखा ने मजाक में बात उडा दी, शादी की जरूरत क्या है मनीषा। रीना को गोद ले लेती हूं, मुझे पली-पलाई बच्ची मिल जाएगी।

और हमारा क्या होगा?

तुम और पैदा कर लेना।

मेहनत हमारी और फायदा तुम्हारा! मजाक में बात खत्म हो जाती।

समय भागता रहा। सुरेखा प्रोफेसर बन कर कोलकाता चली गई। वहां से फोन करती और दिल्ली आती तो मिलना होता। साल-दर-साल चेहरा कठोर हो रहा था। शैलेश के मन में उसके लिए स्नेह उमडता। जैसे बडा भाई बहन को सुसराल के लिए विदा कर रहा हो। कहता, सुरेखा, खयाल रखना अपना। मनीषा भी उसे गले लगा कर विदा करती।

अब रीना सेकंडरी की परीक्षा देने वाली थी। शैलेश के कॉलेज में भी परीक्षाएं होने वाली थीं। क्लासेज नहीं होतीं, स्टाफ रूम में ही छात्र कुछ न कुछ पूछने आ जाते। एक दिन बैठा ही था कि मोबाइल बजा, हेलो

हां, सुरेखा बोल रही हूं! दूसरी ओर से आवाज आई, कहां हो?

स्टाफ रूम में

कुछ दिन कोलकाता आ सकते हो?

कब?

फौरन!

आ जाऊंगा।

भाभी और रीना?

रीना की परीक्षाएं हैं, आना मुश्किल होगा। ठीक है, आप आ जाएं, मैं एयरपोर्ट पर आ जाऊंगी। फ्लाइट का टाइम बता देना।

क्या चट मंगनी पट ब्याह कर रही हो?

यही समझ लें, आपके बिना नहीं हो सकता। शैलेश ने मनीषा को बताया तो उसने तुरंत जाने को कहा। अगली सुबह की फ्लाइट से वह कोलकाता निकल गया। एयरपोर्ट पर सुरेखा मौजूद थी। उसने टैक्सी में एयरबैग रखा तो देखा, डिक्की में पहले से एक बैग था। पूछा, दूसरा बैग किसका है?

मेरा

मगर हम कहां जा रहे हैं?

..याद है आपसे ही पहली सिगरेट ली थी?

हां, वो गुनाह मुझसे हुआ था।

सहारा भी तो आप दोनों ने ही दिया।

लेकिन पहली सिगरेट का क्या कनेक्शन है?

कैंसर हॉस्पिटल जा रहे हैं, आखिरी स्टेज है, कुछ हफ्तों की बात है बस..। रीना के इम्तहान होने तक शायद हॉस्पिटल वाले टिका लें..।

शैलेश सकते में आ गया, कुछ बोल न सका। बस सुरेखा को अपने पास खींच कर गले से लगा लिया। उसके आंसू अनवरत बह रहे थे। कुछ पलों बाद वह अलग हुई और रुंधे गले से बोली, अस्पताल में सिगरेट पीना मना है। आज आखिरी सिगरेट आपके हाथ से लेकर पीनी है। आप भी वादा कीजिए कि यह आपकी भी आखिरी सिगरेट होगी, भाभी और रीना की खातिर।


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