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अब आंखों में नींद नहीं सिर्फ आंसू हैं (पार्ट-2) – Hindi Story

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इस कहानी का पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें


इतनी देर कैसे लगी?


राजेश ने अंदर आते हुए कहा, बताता हूं, अंदर तो आने दो।


तुम्हें क्या..कोई परवाह है मेरी? कितनी परेशान हो जाती हूं मैं। मोबाइल भी बंद कर रखा है तुमने, पता नहीं कहां थे। शालिनी ने गुस्से में कहा।


राजेश ने कपडे बदलते हुए कहा, मैं हॉस्पिटल में था, इसलिए मोबाइल बंद करना पडा।


क्या हुआ? शालिनी ने घबरा कर पूछा।


कुछ नहीं। प्रकृति भी पता नहीं कैसे-कैसे मजाक करती है। जानती हो शालिनी, मनोज


अस्पताल में डॉक्टर करीब एक हफ्ते तक उन्हें अपनी निगरानी में रखेंगे। मनोज की समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे। उसकी बहन प्रेग्नेंट है, वह भी नहीं आ सकती। मां को अकेला छोड नहीं सकता। कह रहा था कि नौकरी छोड देगा।


नहीं राजेश, मनोज भैया को नौकरी नहीं छोडनी चाहिए। शालिनी ने राजेश की बात बीच में ही काट दी और बोली, मैं उनकी मां की देखभाल कर लूंगी।


तुम! राजेश आश्चर्य से भर कर बोला, क्या कह रही हो शालिनी तुम! मनोज की मां की देखभाल कर सकोगी?


शालिनी ने सहजता से उत्तर दिया, हां राजेश, मैं जानती हूं कि मैं उनसे कभी नहीं मिली, लेकिन क्या हम लोग मनोज भैया की इतनी मदद भी नहीं कर सकते।


राजेश ने शालिनी की बात सुन कर उसे गले से लगा लिया और बोला, मैं यह तो जानता था कि तुम दिल की अच्छी हो, लेकिन तुम इतना बडा दिल भी रखती हो, यह तो मुझे आज ही पता चला है।


दूसरे दिन राजेश ने मनोज से कहा कि वह जल्दी से जल्दी जाकर अपनी नौकरी जॉइन कर सकता है। यहां वह और शालिनी उसकी मां की देखभाल कर लेंगे। राजेश ने मनोज की जिन आंखों में अपनी पढाई पूरी न कर पाने का दर्द देखा था, उन्हीं आंखों में अपनी छोटी-सी मंजिल पा लेने की प्यास देखी।


मनोज ने मां की तरफ देखा। मां ने मनोज का हाथ पकड कर कहा, अब तू जा।


मनोज ने राजेश को गले से लगा लिया और बोला, यार, मैं तेरा और भाभी का एहसान कभी नहीं चुका पाऊंगा।


राजेश ने उसे और कस कर भींचते हुए कहा, एहसान मत चुकाना यार, पहले नौकरी तो जॉइन कर जाकर।


दूसरे दिन ही मनोज अहमदाबाद चला गया। राजेश और शालिनी जब मनोज की मां के पास पहुंचे तो उनकी आंखों में आंसू देखे। मां ने शालिनी को गले से लगाते हुए कहा, बेटी आज अगर तुम न होतीं तो मेरा बेटा एक बार फिर अपनी किस्मत से हार जाता।


उनका गला भर आया। शालिनी ने धीरे से मनोज की मां का हाथ दबाया और मुसकरा दी। शालिनी और राजेश मां को घर ले आए। दोनों की सेवा से मां के स्वास्थ्य में जल्दी सुधार होने लगा।


दीवाली की छुट्टी में मनोज आकर अपनी मां को घर ले गया। शालिनी अपने मां-बाबूजी को अपने पास ले आई। दूज पर शालिनी अपने भाई का इंतजार कर रही थी। उसकी मां ने कई बार उससे खाना खा लेने को कहा, लेकिन शालिनी ने हर बार यह कह कर इंकार कर दिया, मां मैं भी तो देखूं कि ईश्वर मेरी सुनते हैं या नहीं। तभी दरवाजे की घंटी बजी। शालिनी ने सोचा शायद उसका भाई आया है। वह दौड कर दरवाजा खोलने गई। सामने मनोज खडा था। शालिनी चौंक गई, अरे मनोज भैया आप? पीछे से राजेश ने शालिनी से कहा, दरवाजा तो छोड दो, उसे अंदर नहीं आने दोगी क्या? मनोज ने अंदर आकर एक पैकेट राजेश को पकडाते हुए कहा, यार, मना बिल्कुल मत करना, मैं भाभी जी के लिए एक छोटा-सा तोहफा लाया हूं।


राजेश ने हंसते हुए पैकेट मनोज को ही पकडाते हुए कहा, मैं कौन होता हूं मना करने वाला। जिसके लिए लाया है तोहफा उसी को दे। शालिनी बीच में ही बोल पडी, नहीं भैया, मैं यह नहीं लूंगी। सबसे बडा तोहफा तो यह है कि आपने समय पर जाकर वह नौकरी जॉइन कर ली।


मनोज मायूस होकर बोला, आज भैया दूज है, मैं आपका भाई तो नहीं, लेकिन क्या आप मुंह बोले भाई की तरफ से आज के शुभ दिन इसे स्वीकार नहीं करेंगी?


शालिनी की आंखों में आंसू आ गए। उसकी मां ने शालिनी की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, ले लो बेटी! यह शगुन है। आज के दिन एक भाई को मना मत कर।


शालिनी ने हाथ बढा कर पैकेट थाम लिया, फिर कहने लगी, एक बात कहूं भैया, आप मुझे भाभी जी मत कहा कीजिए।


मनोज बोला, यह बात तो ठीक है राजेश। मां की बीमारी का पता चलते ही मेरे सभी दोस्त अपनी पत्नियों सहित आए थे और मेरी मजबूरी पर अफसोस भी जताया था परंतु मेरी जो सहायता तुमने और भाभी जी ने।


फिर भाभी जी शालिनी बीच में ही बोल पडी। सभी ठहाका लगा कर हंस पडे। मनोज कान पकड कर बोला, नहीं कहूंगा भाभी जी, अब से मैं तुम्हें सिर्फ शालिनी ही कहूंगा, क्योंकि जो तुमने किया है वह एक बहन ही कर सकती है।


और आज एक साल बाद फिर भाई दूज पर मनोज ने आकर भाई होने का फर्ज पूरा किया। तभी जैसे उसे किसी ने नींद से जगा दिया-कहां खो गई! चलो जल्दी से मनोज को टीका कर दो, उसे रेलवे स्टेशन भी छोडने जाना है। आज ही वापस जा रहा है। कहता है कि मां वहां अकेली है। शालिनी टीके की थाली सजाते-सजाते सोचने लगी कि रक्त संबंधों को लोग कितनी अहमियत देते हैं। एक तरफ उसका अपना भाई है, जो शादी के बाद ससुराल में ऐसा बस गया कि उसे कोई त्योहार भी याद नहीं रहता और दूसरी तरफ मनोज है, जिससे रिश्ता इतना गहरा बन गया है, जितना इस हल्दी का दाग, जो लग जाए तो फिर जल्दी नहीं छूटता।


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