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माता-पिता डरते थे कि दो बच्चों की मां सविता के साथ कुछ घटित हो गया तो छोटी बहन का क्या होगा। सविता की सास ने साफ शब्दों में कह दिया था कि वह बच्चों को नहींरखेंगी। लेकिन कनिका ने दृढ शब्दों में कहा, दीदी! तुम जाओ। मैं हूं न! मां न सही, मौसी ही सही।
…बच्चों को इसी दुस्साहसी मौसी के पास छोडकर सविता भविष्य की ओर बढ गई थी।
सारी औपचारिकताएं पूरी करके जब निश्चिंत हुई तो तुषार याद आने लगा। जैसा भी है, आखिर है तो उसका पति। उससे इतने वर्र्षो का रिश्ता तो है। फोन पर बात हुई थी कि वह कोलंबिया आएगी तो तुषार उसके पास आ जाएगा। लेकिन यहां भी वह प्रतीक्षा ही करती रही, सिवा निराशा के उसके हाथ कुछ न लगा। धीरे-धीरे उसने खुद को रिसर्च में व्यस्त कर लिया, फिर तय किया कि वह न आया तो खुद ही मिलने जाएगी। ऐसे ही एक वीकेंड पर वह तुषार के घर पहुंची तो उसका स्वागत किया रूथ और उसके बच्चे ने। बच्चा भी आठ-दस साल का था। यानी तुषार पहले ही से विवाहित था और यह बात उसने सविता से छुपाई थी।
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…बहुत मिलनसार लगी रूथ, प्यारी भी। इतनी खूबसूरत पत्नी के रहते तुषार ने उससे विवाह का नाटक क्यों किया? सविता के मन में रह-रहकर तुषार के प्रति आक्रोश उत्पन्न होता। रूथ को उसने अपना परिचय यह कहकर दिया कि वह और तुषार एक ही शहर केहैं। लिहाजा रूथ ने भी भारतीय परंपरा के अनुसार उसका स्वागत किया। लेकिन भीतर ही भीतर वह भी कुछ असहज सी थी।
कुछ देर बाद तुषार भी आ गया। सहजता से सविता से मिला। तुषार को देखकर उसे यह महसूस भी नहीं हुआ कि उसे कोई पश्चाताप है। बेहयाई से बोला, कभी न कभी तो यह बात तुम्हें पता चलनी ही थी। आज न सही, कल। देखो, तुम अब यहां आ गई हो तो हम अच्छे दोस्त बनकर रह सकते हैं। परिवार तो मेरा यही है। मम्मी-पापा को हिंदुस्तानी बीवी चाहिए थी, सो मुझे शादी करनी पडी। वंश चलाने के लिए उन्हें बच्चे भी दे दिए..। वह बेहयाई से बोला।
इसको यह भी डर नहीं है कि मैं रूथ को सब कुछ बता सकती हूं। कैसा इंसान है यह? सविता घुटी जा रही थी भीतर से। बिना कुछ कहे ही उठकर खडी हो गई। रात घिरने लगी तो तुषार ने कहा, अब रात को कहां जाओगी, सुबह चली जाना। रूथ ने भी मनुहार की।
Read – आज से तुम्हारा एक-एक पल बस मेरा है !!!
थैंक्स। सविता ने रूथ के स्नेह का उत्तर दिया और प्यार से उसकी हथेली दबा दी। वहां से निकलकर वह एक होटल में चली गई। पूरी रात जागते हुए बिताई उसने। कभी तुषार पर क्रोध आता, कभी रूथ पर तो कभी माता-पिता पर गुस्सा आता। सुबह होते-होते उसे महसूस हो गया कि इसमें रूथ की तो कोई गलती ही नहीं है।
एक वर्ष के बाद भारत आकर उसने तुषार को कोर्ट का नोटिस भिजवा दिया। तलाक भी मिल ही गया। लेकिन इसके लिए सविता और तुषार दोनों को कई बार भारत आना पडा।
..अंत में सविता को एहसास हुआ कि अकेले जीने का साहस भी उसकी छोटी बहन ने ही उसके भीतर पैदा किया है। सही मायनों में तो वही उसकी ढाल बनकर खडी रही। तुषार के परिवार ने तो विदेश में रहने वाली सविता के चरित्र को लेकर भी सवाल कर दिए थे। बच्चे सविता को मिले। तुषार की तो उनमें कोई रुचि थी नहीं, माता-पिता अपने गले में घंटी बांधने को तैयार न थे।
..बच्चों को आज भी कनिका पाल रही थी। वह कॉलेज में प्रोफेसर थी और बच्चों के लिए उसने शादी न करने की ठान ली थी।
..और आज भी पापा अपनी गलती पर पछता रहे हैं। इसके बावजूद विनीता का निर्णय उन्हें गलत लग रहा है। आखिर क्यों? क्या सिर्फ कन्यादान कर देना ही माता-पिता के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है? शादी से पहले विनीता की मुलाकात दूसरे लडके से कराई गई और शादी वाले दिन दूल्हे के सेहरे के भीतर उसे कोई दूसरा लडका नजर आया तो वह शादी क्यों करे।
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कनिका के सवालों के जवाब सबके पास थे, लेकिन प्रत्यक्ष में कोई बोल नहीं पा रहा था। ताऊजी भी रोने लगे थे। आखिर फूफाजी ने मुंह खोला, बेटा! जब पहले ही कदम पर तुम्हें झूठ पता चल गया तो ऐसी शादी से मना करके न सिर्फ तुमने अपनी जिंदगी बचाई, बल्कि भाई साहब का जीवन भी नर्क होने से बचा लिया। सबके अरमान जुडे होते हैं शादी से। ऐसे में थोडा बुरा लगना तो स्वाभाविक है, लेकिन तुमने हिम्मत का परिचय दिया, इसकी खुशी भी है।
बोझिल माहौल में फूफा जी की बातों से नई जान सी आ गई। विनीता का मुरझाया हुआ मुंह अब खिल उठा था, हालांकि अपने भीतर वह कितनी क्षुब्ध थी, यह तो वही जानती थी। फिर भी उसके कदम दृढता से मम्मी-पापा के कमरे की ओर उठ रहे थे, जो बारात लौट जाने के बाद से अपने कमरे में बंद थे।
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