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जैसे वह कब्रों की रखवाली में बैठा हो (पार्ट-1) – Hindi Story

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रवि ने अभी-अभी एक नज्म लिखनी शुरू की थी। लक्कड मंडी से काले टोप को जाती हुई पगडंडी चढते हुए उसने पहाड की हरियाली को घूंट-घूंट पिया था, अंजुली भर कर पिया था, होंठ टेककर पिया था और फिर मीलों चढाई के बाद डाक बंगले पहुंचकर उसने जब सामान रखा और जब उसकी बीवी ने उसके लिए गर्म कॉफी का प्याला बनाया था और बिस्तर बिछा दिया था, तो उसे महसूस हुआ कि वह अभी सो नहीं सकेगा। वह डाक बंगले से अकेला बाहर निकला। बाहर आकर उसे लगा कि जिस हरियाली को उसने घूंट-घूंट पिया था, अंजुली भरकर पिया था और होंठ टेककर पिया था, उसे जज्ब कर पाना मुश्किल था। उसने कागज लेकर एक नज्म लिखनी शुरू कर दी। नज्म लिखते-लिखते महसूस हुआ था कि लिखकर हरियाली के तेज नशे को उतारने के लिए एक एंटी-डोज ले रहा था।


कागज पर लिखी अधूरी नज्म को उसने नीचे घास पर रख दिया। नज्म अभी पूरी नहीं हुई थी। पत्थर का छोटा सा कंकड उसने कागज पर रख दिया और घास पर लेट गया। उसे सा‌र्त्र की कही बात याद आई, मैं जब लिखता हूं तो निराशा के जाल में एक खूबसूरती पकडने की कोशिश करता हूं। रवि को लगा, जब मैं नज्म लिखता हूं तो निराशा के जाल में खूबसूरती नहीं पकडता, बल्कि हमेशा खूबसूरती के जाल में निराशा को पकडने की कोशिश करता हूं।


रवि ने मन की गहराइयों में झांककर देखा। कहीं मायूसी नहीं थी, पर कागज पर लिखी हुई नज्म में मायूसी थी। रवि इस बात से इंकार नहीं कर सकता था। उसे लगा जैसे वह कब्रों की रखवाली में बैठा हो। उसकी मुहब्बत कब की दम तोड चुकी थी। मुहब्बत का दर्द भी दिल में नहीं रहा था। वह उस लडकी को नहीं पा सका था, जिसे उसने कभी पाना चाहा था पर उसकी दलील पर यह लडकी भी खूबसूरत थी, जिसके साथ उसका विवाह हुआ था। शायद इसीलिए उसके मन में खोए हुए दिनों का दर्द नहीं बचा था। लेकिन लिखते हुए कविता में हर बार दर्द उतर आता था। इस दर्द को दर्द नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह दर्द अब जीवित नहीं था। इसीलिए आज रवि सोच रहा था कि उसके अंदर वह रवि, जो नज्में लिखता था-कब्रों की राख में बैठा हुआ था।


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रवि को फिर सा‌र्त्र याद आया। सा‌र्त्र ने अपने बारे में लिखा था कि हाथ में कागज लेकर हर सुबह कुछ लिखने की उसकी दीवानगी इस तरह थी जैसे वह अपने जीवित होने की माफी मांग रहा हो। रवि को यह बात सच मालूम हुई। उसने आज तक जो कुछ भी लिखा था, उसे उसने कभी उस लडकी को पढाना नहीं चाहा, जिसका जिक्र वह अपनी नज्मों में करता था। न उसने अपनी कविताओं से नाम ख्ारीदना चाहा था। प्रसिद्धि के विषय में भी उसका विश्वास सा‌र्त्र से मेल खाता था कि प्रसिद्धि तब आती है जब मनुष्य मर चुका होता है। वह उसकी कब्र को सजाने के लिए आती है और अगर पहले चली आए, मनुष्य के जीते-जी चली आए, तो पहले वह अपने हाथों से मनुष्य को कत्ल करती है, फिर उसकी कब्र को सजाती है। रवि ने अपनी कविताओं को कभी इनामी प्रतियोगिताओं में नहीं भेजा था। प्रतियोगिताएं उसे ऐसी लगती थीं जैसे कुछ अमीर अपने धन या पदवी के जोर से कलाकारों को बटेरों की तरह लडाकर देखते हों और अपने प्रतियोगियों को घायल कर जो जीत जाता है, उसका जुलूस निकालते हों। रवि को महसूस हुआ कि वह न किसी महबूब के लिए लिखता है और न मशहूर होने के लिए। वह रोटी खाता था ताकि जीवित रह सके, कविता लिखता था, ताकि जीवित रहने के कसूर की माफी मांग सके।


और फिर रवि को अत्यंत घृणित विचार ने आ घेरा कि नज्में केंचुआ होती हैं। केंचुए पृथ्वी की जलन में से जन्म लेते हैं और नज्में मन की तपिश में से। रवि को वास्तव में अपना विचार घृणित नहीं लगा था। उसे केंचुए की लिजलिजी शक्ल याद हो आई थी और नज्म की तुलना केंचुए से करते हुए उसे लगा था कि उसके इस खयाल का बदन भी लिजलिजा गया था। पर बात सच्ची है रवि ने सोचा और हंस पडा।


फिर रवि को खयाल आया कि हर नज्म खामोशी की औलाद होती है। जब आदमी एक तरफ से इतना गूंगा हो जाता है कि एक शब्द भी नहीं बोल पाता, तो उसे खामोशी से घबराकर कोई कविता लिखनी पडती है।


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..फिर रवि को खयाल आया कि नज्म लिखना ख्ाुदा के बाग से सेब चुराने के बराबर है। आदम ने सेब चुराया तो उसे हमेशा के लिए बाग से निकाल दिया गया था। इस तरह जो भी इंसान नज्म लिखता है, उसके मन का कुछ हिस्सा भले ही इस दुनिया में रहता है, लेकिन कुछ हिस्सा हमेशा-हमेशा के लिए जलावतन हो जाता है।


लेकिन नहीं, रवि ने सोचा, इन दोनों पहलुओं का एक-दूसरे से नफरत का रिश्ता होता है। दोनों शायद एक-दूसरे से स्पर्धा करते हैं, इसलिए दोनों एक-दूसरे से घृणा करते हैं। यह नियमित घृणा आक्रमण जैसी स्थिति में बदल जाती है। कविताएं इस युद्ध में हथियार बनती हैं और फिर यह बात सोचकर रवि को अपनी हंसी में दर्द महसूस होने लगा, और नज्में ही शायद इस युद्ध में खाए हुए जख्मों की खरोचें होती हैं।


नज्मों के इतने रूप अख्तियार कर सकने की ताकत से रवि को नज्मों के दीर्घ आयाम का विचार आया। इंसान इस धरती पर कितनी कम जगह रोक पाता है। इंसान के चारों ओर माहौल का जिरहबख्तर इतना कसा हुआ और पेचीदा होता है कि वह आजादी से हाथ-पैर भी नहीं संचालित कर सकता। उसकी कविता का आयाम इतना विस्तृत होता है कि वह एक ही समय अपना एक पांव इंसान के पालने में रखकर, दूसरा पांव इंसान की कब्र में रख सकती है।


खयालों की नदी बहती जा रही थी। नदी में बरसात के पानी की बाड नहीं थी। यह दोनों किनारों की मर्यादा को स्वीकार किए चुपचाप बह रही थी और रवि इसके पानी में निर्बाध तैरता जा रहा था।


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वीराजी! आपका कागज हवा में उडकर बहुत दूर चला गया था। आपको पता भी नहीं चला। मोना रवि के पास आकर बोली। उसने कागज रवि के हाथ के पास रख दिया। हवा तेज चलने लगी थी। मोना ने कागज पर रखने के लिए आसपास पत्थर का टुकडा खोजना चाहा ताकि कागज न उडे। फिर उसने अपना हाथ ही कागज पर रख दिया।


रवि ने धूप-ढली की हलकी रोशनी में कागज की ओर देखा और फिर कागज पर टिके मोना के हाथ को देखा। पतला और गोरा हाथ। रवि को लगा कि यह हाथ एक पेपरवेट था। हाथ को जिस्म से अलग कर एक पेपरवेट की तरह मेज पर रख सकने का खयाल रवि को दिलचस्प लगा। उसे याद आया कि एक दिन उसकी बीवी ने उसके कोट को अपने कंधों पर डाला हुआ था तो उसे एक खूबसूरत हैंगर का खयाल हो आया था। रवि को आश्चर्य था कि सजीव शारीरिक अंगों की कल्पना वह निर्जीव वस्तुओं के रूप में क्यों करता है? सुडौल, तने हुए गोरे कंधों को देखकर उसे कोट-हैंगर का विचार क्यों आता है और पतले गोरे हाथ को देखकर उसे पेपरवेट का खयाल क्यों आता है? किसी की हथेलियों को अपने होंठों पर रखने का खयाल उसे क्यों नहीं आता..।


रवि ने अपने इस खयाल को घेरकर अपने तक ले आना चाहा-अपनी समझ तक। बिलकुल उसी तरह जैसे वह बहती नदी में पानी के उलटे रुख तैरने की कोशिश कर रहा हो। सजीव अंगों को निर्जीव वस्तुओं के रूप में कल्पना करने से उसे ग्लानि हुई। उसे लगा कि दूसरे के अंग सजीव थे, लेकिन उसके अपने अंगों में कुछ मर गया था। इसीलिए दूसरों के अंगों को स्पर्श करने जैसा खयाल उसे नहीं आता था। रवि ने अपने भीतर मरते कुछ को जिंदा करना चाहा और आंखों पर जोर देकर नजर गडाकर मोना के चेहरे की ओर देखा।


मोना उसकी बीवी की छोटी बहन थी। चौदह-पंद्रह साल की थी, लेकिन रवि को आज तक वह बच्ची के रूप में ही दिखाई देती रही थी। वह मोना को बच्चों की तरह डांटता था और बच्चों की तरह ही दुलारता था। अब उसने अपने ख्ायालों को घेरकर मोना की तरफ ऐसे देखा जैसे बहती नदी के पानी में उलटे रुख जाकर उसकी झलक ले रहा हो। उसने पहली बार देखा कि मोना खूबसूरत युवा लडकी थी……..


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