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एकाध दिन मस्ती कर लेंगे तो क्या हो जाएगा …..(पार्ट-2) – Hindi Story

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इस कहानी का पहला भाग पढ़ने के क्लिक करें


प्रकाश जी का क्रोध ख्ात्म नहीं हुआ। बोले, कल ही आर्या को फोन करके कहता हूं कि पुलिस में रिपोर्ट कर दे। एक दिन लॉकअप में रहेंगे तो होश ठिकाने आ जाएंगे।


देखिए ये नई पौध है। ख्ाुद में मगन। इन्हें न तो समाज की चिंता होती है और न मां-बाप की। फिर हमारी क्या चिंता करेंगे ये! मिसेज्ा प्रकाश ने कहा तो प्रकाश जी बोले, कल ही फैसला कर डालता हूं..। दोनों सो गए। रात में अचानक प्रकाश जी की नींद खुली। उन्हें कुछ आवाज्ा सी सुनाई दी। देखा मिसेज्ा प्रकाश बिस्तर पर नहीं हैं। तभी एक चीख-सी सुनाई दी। लगा मानो कोई किसी का गला घोंट रहा है। सहमे हुए से बिस्तर से उठे और बाथरूम की ओर मुडे ही थे कि किसी ने सिर पर भारी चीज्ा से वार कर दिया। कुछ समझ पाते इससे पहले ही वे बेहोश हो चुके थे।


..होश आया तो देखा, हाथ और सिर पर पट्टी बांधे मिसेज्ा प्रकाश उनके सिरहाने बैठी हैं। प्रकाश जी ने कुछ याद करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें मूर्छा-सी आ गई। हॉस्पिटल में नीरव शांति पसरी थी। कुछ देर बाद उन्होंने फिर आंखें खोलने की कोशिश की। अबकी उनकी नज्ार कमरे में एक ओर बिछे बेंच पर गई। वहां कोई लेटा था। उन्होंने धीमी आवाज्ा में पूछा, मनीष आ गया क्या?


नहीं, यह तो गुरु है, हडबडाकर आंखें खोलते हुए मिसेज्ा प्रकाश ने जवाब दिया। प्रकाश जी को चालीस घंटे बाद होश में आया देख पत्नी का चेहरा खिल उठा।


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गुरु!


हां, पडोस में रहने वाला वही लडका, जिससे हमारी बहस हुई थी।


ये यहां क्यों है!


इन्हीं के कारण जीवित रह पाए हैं हम लोग। मैं बाथरूम के लिए उठी तो देखा पिछवाडे के दरवाज्ो की कुंडी खुली है। मुझे लगा शायद रात में लगाना भूल गई हूं। बंद करने गई थी कि किसी ने पीछे से मेरा मुंह बंद कर दिया। दूसरे ने आकर मेरे गले पर छुरा रख दिया। मुझे समझ आ गया कि घर में चोर घुस चुके हैं। चोरों ने इतनी देर में सब कुछ समेट लिया था। बैंक से आज ही जो कैश लाई थी, वह भी साफ कर दिया। मैं पांच मिनट बाद उठती तो वे भाग चुके होते।


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आपके उठने के पहले से एक चोर पलंग के पास खडा था। मैं उसे देख रही थी पर, मेरा मुंह दबा होने के कारण कुछ कर नहीं पा रही थी। उन्होंने मुझे बुरी तरह जकड रखा था। आपके उठते ही उसने आप पर वार कर दिया। आप जैसे ही गिरे, मुझमें न जाने कहां से इतनी ताकत आ गई और मैंने ज्ाोर लगा कर ख्ाुद को छुडा लिया। पीछे के दरवाज्ो से भाग कर ज्ाोर-ज्ाोर से चोर-चोर चिल्लाने लगी। शोर सुन कर ये बच्चे तुरंत बाहर निकल आए। इन्होंने चोरों का दूर तक पीछा किया। बाकी तो भाग निकले, एक इनके हाथ आ गया।


मुझे अस्पताल में किसने दाख्िाल किया?


इन्हीं बच्चों ने। एक ने पुलिस को फोन करके चोर को उनके हवाले किया। दूसरे ने एंबुलेंस बुलवाई। आपके सिर से काफी ख्ाून बह चुका था। डॉक्टरों ने कहा कि ख्ाून चढाने की ज्ारूरत पडेगी तो इन्होंने ही चार बोतल ख्ाून दिया। ..आप यकीन नहीं करेंगे, उस रोज्ा आधी रात को न जाने कहां-कहां से यहां बीस बच्चे इकट्ठे हो गए थे। सब इनके साथ पढने वाले छात्र थे। सुबह तक एक भी यहां से नहीं हिला। मैं भी कुछ देर के लिए बेहोश हो गई थी। मुझे होश आया तो कहने लगे, आंटी जी, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए। आपका बेटा नहीं है पास में तो न सही, हम 20-25 छात्र हैं। हम आप दोनों को कुछ नहीं होने देंगे। दवा लाना, घर की देखभाल, डॉक्टर, पुलिस जैसे सारे काम ये बच्चे ही संभाल रहे हैं। पैसे निकालने के लिए एटीएम कार्ड देने लगी तो बोले, आंटी, अभी रहने दीजिए। आप दोनों ठीक होकर घर आ जाएंगे, तब दे दीजिएगा। अभी हम लोगों ने मैनेज कर लिया है।


मनीष को फोन नहीं किया तुमने? प्रकाश जी ने जानना चाहा।


पहला फोन इन बच्चों ने ही किया था उसे। मैंने नंबर दे दिया था। मैं तो बात करने की स्थिति में थी ही नहीं। मनीष ने कई मर्तबा डॉक्टर से बात की। आज सुबह फिर बात हुई तो कह रहा था कि ऑफिस में कोई ज्ारूरी प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसमें उसका होना ज्ारूरी है। इसलिए वह कल रात वहां से निकल कर परसों सुबह यहां पहुंचेगा। गुरु ने ही मनीष को आश्वस्त किया है। कल फोन पर मैंने उसे कहते सुना, मनीष भाई, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए। हम लोग यहां हैं। आप अपना काम ख्ात्म करके ही आइए। तब तक हम सब संभाल लेंगे।



प्रकाश जी ने पास के बेंच पर सोए हुए गुरु पर एक नज्ार दौडाई। हिलने-डुलने में भी असमर्थ प्रकाश जी अपने हृदय में उमडी हिलोर को केवल नज्ार के माध्यम से ही गुरु के शरीर तक पहुंचा सकते थे। मिसेज्ा प्रकाश से यह छिपा न रह सका। कहने लगीं, दो रातों से सोया नहीं है यह बच्चा। आज जब डॉक्टर ने कहा कि अब ख्ातरा टल चुका है तो मैंने जबरदस्ती इसे दूध-ब्रेड खाने को दिया और डांट कर इसे यहीं बेंच पर सो जाने को कहा। इनके भी पढने-लिखने के दिन हैं, एग्ज्ौम्स होने वाले हैं, लेकिन ये लोग दो दिनों से यहां शिफ्ट-ड्यूटी बजा रहे हैं। ..मज्ोदार बात यह है कि ये सब बिहार के पूर्णिया जिले के रहने वाले हैं। आप जानते हैं यह गुरु तो मेरीगंज का है।

मेरीगंज?


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हां, वही मेरीगंज जिसका उल्लेख फणीश्वर नाथ रेणु जी के मैला आंचल में आता है। खेलावन यादव जैसे चरित्र मेरीगंज के ही तो हैं उस उपन्यास में। गुरु बता रहा था, आंटी जी, मैंने घर की गाय का दूध पिया है। इसलिए इतना हट्टा-कट्टा हूं। ऐसे दो-चार चोरों को तो मैं अकेले ही निपटा देता। मिसेज्ा प्रकाश पिछले दो दिनों में घटित कई बातें बतलाना चाहती थीं, लेकिन प्रकाश जी को फिर नींद आ गई। नींद में भी उनका एक हाथ आधा उठा था, मानो बेंच पर सोए हुए गुरु को आशीष दे रहे हों। एक पल में मन में जमी सारी कडवाहट धुल चुकी थी।



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