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पापा को डॉक्टर के पास लेकर जाना है……. – Hindi story (पार्ट -1)

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मनोज जैसे ही घर में दाखिल हुए, कनक ने टीवी बंद करते हुए कहा-बडी देर कर दी?


सुबह बताया तो था, पापा को चेक-अप के लिए ले जाना था।


बताया तो था, पर इतनी देर?


imageकिसी दिन मेरे साथ चलना तो पता चलेगा कि डॉक्टर्स के यहां कितनी भीड होती है। जितना अच्छा डॉक्टर, उतनी ज्यादा भीड। दफ्तर से लौटते हुए मैं नंबर लगाता गया था। फिर नंबर सेसमय का अंदाज लगाकर पापा को लेकर गया। नहीं तो वे क्या इतनी देर बैठ पाते?


पर हर बार आप ही क्यों?


तो और कौन जाएगा? मां या पंकज?


देवीजी, डॉक्टर के यहां साथ जाने का मतलब होता है, मरीज की सही हालत जानना, प्रिस्क्रिप्शन समझना, परहेज के बारे में जानना, अगले प्रोजेक्ट की जानकारी लेना। इसके लिए एक जिम्मेदार आदमी की जरूरत होती है। जाने को तो पापा अकेले जा सकते हैं, लेकिन वह सारी बातें तो नहीं बताएंगे न। आधी डॉक्टर से छिपा जाएंगे, आधी हमसे।


कनक कुछ नहीं बोली, मुंह फुलाए बैठी रही। मनोज ने जूते उतारते हुए कहा-और एक बात साफ बता दूं मैडम! मैंने सिर्फ घर छोडा है, घर के लोग नहीं। उनके सुख-दुख से अब भी मुझे सरोकार है। घर छोडने का ताना हर वक्त क्यों देते रहते हैं? तुम उकसाती हो। नहीं तो इतना थकने के बाद कुछ कहने-सुनने की ताकत नहीं है। अगर तुम्हारा क्रॉस-एग्जामिनेशन खत्म हो गया हो, तो खाना लगा दो, बहुत थक गया हूं। खाकर सो जाऊंगा।


ओह! मैंने सोचा था इतनी देर हो गईहै तो आप खाना खाकर आए होंगे..। जरूर खाकर आता। पर पिछली बार तुमने जो हंगामा किया था, उसके कारण न तो मां की कहने की हिम्मत हुई, न मेरी खाने की..। कहते हुए वह फ्रेश होने चले गए। कनक खाना लगाने लगी, पर उसका मन गुस्से से भरा हुआ था। भला अलग रहने का फायदा क्या हुआ? अब भी वहां की जिम्मेदारियां ढोए चले जा रहे हैं। आज मां की आंखें टेस्ट करवानी हैं, कल उनका चश्मा बनवाना है, परसों पंकज का फॉर्म भरना है..। पापा के चेकअप का नाटक तो निरंतर चलता ही रहता है। नीरज वहां दिल्ली में मजा कर रहा है। यहां सब हमको ही भुगतना है।


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खाना दोनों ने बेमन से खाया। दोनों ही अपने-अपने विचारों में खोए हुए थे। मनोज शायद चिंताग्रस्त थे। कनक गुस्से में उफन रही थी। अगर मनोज खाना खाकर आए होते तो उसे गुस्सा करने का मौका मिल जाता। पर पिछले एपीसोड की याद दिलाकर उन्होंने उसकी बोलती बंद कर दी थी। मन का गुबार लेकर उस रात कनक बहुत अशांत थी, देर तक करवटें बदलती रही। बडी देर बाद उसने लक्ष्य किया कि मनोज भी सोए नहीं है। टकटकी लगाए छत को निहार रहे हैं।


क्या बात है? अभी तक सोए नहीं? खाना खाते समय तो आपको इतनी नींद आ रही थी? मनोज ने उसकी ओर घूरकर देखा। फिर धीरे से बोले-टेंशन हो गया है।


क्यों?


पापा का ऑपरेशन जरूरी हो गया है।


ऑपरेशन मतलब ओपन हार्ट सर्जरी? उसमें तो बहुत खर्च आता है न?


खर्च तो हर ऑपरेशन में आता है। टेंशन उसका नहीं है। प्रश्न यह है कि पापा उसके लिए तैयार होंगे कि नहीं। उन्हें राजी करना एक टेढी खीर है। फिर यह कि राजी हो भी गए तो यह ऑपरेशन झेल पाएंगे कि नहीं। उनका ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, सब कंट्रोल करना होगा और उनका तो यह हाल है कि डॉक्टर के यहां जाने के नाम से ही उनका बीपी बढ जाता है। वह अपनी चिंताएं बता रहे थे और कनक सोच रही थी कि खर्च का टेंशन नहीं है, यह तो मान लिया, लेकिन वह आएगा कहां से। वह पूछना चाहती थी, पर डर के मारे चुप रही। फिर वहीं जुमला सुना देंगे-मैंने घर छोडा है, घर के लोग नहीं।


उसके बाद यह विषय घर में तो नहीं उठा, पर मनोज अनमने से बने रहे। पापा का ऑपरेशन उनके दिमाग पर हावी रहा। पति की चिंताओं को साझे में ढोने का कनक का मन होता था, पर हिम्मत नहीं पडती थी। अलग घर बसाकर उसने जैसे एक अक्षम्य अपराध कर डाला था। दोनों के बीच एक अदृश्य दूरी थी। जब तक सबके साथ थी, एक कमरे में भी अपनापन लगता था, घर भरा-भरा रहता था।


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अब अलग घर होने के बाद सुविधा यह हुई कि कनक के मम्मी-डैडी हफ्ता-दस दिन में अपने नवासे सुमंत को देखने आते रहते थे। पहले समधियाने जाते संकोच हो जाता था। इस बार आए तो उन्होंने भी लक्ष्य किया कि मनोज कुछ परेशान से हैं। दरअसल वे उनके पास मुश्किल से कुछ मिनट बैठे और उठ खडे हुए-कनक, तुम चाय की तैयारी करो। मैं डैडी के फेवरेट समोसे लेकर आता हूं। अरे रहने दो बेटा, क्यों परेशान हो रहे हो? चाय काफी है। परेशानी की कोई बात नहीं है डैडी। मुझे पापा की दवा लेने जाना ही था। देर से जाऊंगा तो दुकानें बंद हो जाएंगी।


जल्दी आना। ऐसा नहीं कि मैं आठ बजे तक चाय लिए बैठी रहूं – कनक ने चेताया।


बस अभी गया और अभी आया।


उनके जाते ही डैडी बोले -क्या बात है बेटा, मनोज कुछ अपसेट-से लग रहे हैं?


कनक तो भरी बैठी थी। एकदम ही फट पडी-बडा अछा घर देखा है आपने मेरे लिए। लगता है इन जिम्मेदारियों से जिंदगी भर उबर नहीं पाऊंगी। इससे तो अछा था, इकलौता लडका देखते..। इकलौते लडके की जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं बेटा। वहां कोई शेयर करने वाला भी नहीं होता। तो यहां कौन शेयर कर रहा है?


इकलौता एक देखा तो था, मम्मी बोलीं- वे लोग तैयार भी थे। पर आप दोनों ही मुकर गए।


ठीक ही तो किया था। उतनी तनख्वाह में तुम्हारी बेटी का गुजारा हो पाता?


डैडी, अब भी उतने में ही गुजारा कर रही हूं। क्या मतलब? मम्मी-डैडी एकदम चौकन्ने हो गए-हर महीने कितना देना पडता है वहां? नहीं, हमेशा तो नहीं देना पडता लेकिन खर्चे लगे रहते हैं। दीदी की विदाई का मौका है, मम्मी का चश्मा है, घर की छत सुधरवानी है, अब पापा का ऑपरेशन है। अगले महीने तो पापा रिटायर भी हो रहे हैं।


डैडी सोच में पड गए। चाय-नाश्ते के दौरान उन्होंने सहज भाव से कहा-ऑपरेशन की कौन सी डेट िफक्स हुई है? अक्टूबर के फ‌र्स्ट वीक में ही हो पाएगा। 30 को पापा रिटायर हो रहे हैं। उनकी इछा उस दिन दफ्तर जाने की है। इसके लिए उसके बाद का ही सोचा है। तब तो तुम पर बहुत लोड आएगा। वह तो आएगा ही। घर का बडा बेटा हूं मैं। नीरज बाहर है, सारी जिम्मेदारी मेरी ही है और आप लोगों के आशीर्वाद से मेरी कमाई भी इतनी है कि इस बोझ को उठा सकूं। नीरज की अभी नई जॉब है, फिर भी पंकज की पढाई का पूरा खर्च वह उठा रहा है। मैंने और पापा ने कितनी बार समझाया कि वह बाहर रहता है, अपने खर्चे पूरा करे लेकिन वह मानता ही नहीं है……

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