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वाइन, वूमेन और कॅरियर…..(पार्ट-1) – Hindi Story

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यहीं से शुरू, यहीं से अंत.. एलिस सोचती है और उसके हाथ के नोट सूखे पत्ते की तरह थरथराते हैं। जिस्म यूं कांपता है, जैसे वर्षो से शांत पडी नदी में किसी ने कुछ फेंक दिया हो। ऐसा ही उस दिन भी हुआ था। बी.ए. का रिजल्ट आया था। दिन में अंकल की चिट्ठी आई कि लडका आई.ए.एस. है, तो फोटो देखते ही उसने हां कर दी। एलिस बहुत तकदीर वाली निकली। मां-बाप की खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्हें लग रहा था कि जैसे जिंदगी की किसी परीक्षा में वे पहली बार बैठे और सफल हो गए। छुपकर उसने भी पत्र पढा था और जिस्म यूं कांपने लगा, जैसे किसी ने वर्षो से शांत पडी नदी में कुछ फेंक दिया हो, यहीं से शुरू, यहीं से अंत..।


शादी के दिन निकट आ रहे थे। बाबा तैयारियों में जुटे थे। मां कहती रहीं कि कुछ अपना भी खयाल रखो तो बाबा हंसकर बोले, अपना ही खयाल तो रख रहा हूं। एलिस मेरी इकलौती बेटी है। कमी रह गई तो मेरी ही बदनामी होगी।


बाबा ने कोई कसर नहीं रखी। बाराती बहुत प्रसन्न हुए थे। कितने खुश थे बाबा, लेकिन विदाई के दिन सुबह से दिखे ही नहीं, जाने की तैयारियां हो रही थीं। वह दबे पांव पूजाघर में गई। जानती थी, जब बाबा दुखी होते थे, इसी कमरे में चुपचाप बैठकर जीसस की तसवीर देखा करते थे। मां कह रही थीं कि सब कुछ उत्साह से किया तो अब जाते वक्त बेटी को आशीर्वाद भी दे दो। बाबा घूमे थे। चेहरा आंसुओं से भीगा था। कांपते स्वर में बोले, याद है, जब एलिस इस घर में आने वाली थी। मैंने कितने उत्साह से सब कुछ जुटाया। पालना, दूध की बोतल, खिलौने.. । फिर वह घर से जाने को हुई, तब भी सब जुटाया। मगर आने-जाने के बीच भी इतना बडा अंतर हो सकता है, मैंने सोचा नहीं था…। वह बच्चे की तरह सिसकने लगे थे।

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मां उनके एकदम करीब गई। आंचल से आंसू पोंछने लगी थीं। हां, जब संतान आने वाली होती है तो मां पीडा से कराहती है, जिसे हर कोई सुनता है, मगर जब वह जाने वाली होती है तो पिता.. जिसके दुख को कोई समझ भी नहीं सकता। ऐसा क्यों होता है? वह भी बाबा के साथ रोने लगी थीं। अचानक उसके हाथों की चूडियां बजीं। बाबा खुद ही उठकर उसके पास आए थे, अच्छा हुआ एलिस, तूने देख लिया। इसे ही आशीर्वाद समझना। याद रखना, जब पुरुष भीड में ख्ाूब हंसे और घर में अपने लिए एकांत चुन ले तो समझना, वह टूट रहा है। ऐसे पुरुष पर क्रोध नहीं, दया करनी चाहिए। उस दिन उसने केवल सुना था, मगर अब समझ गई है कि बाबा ने दूसरे शब्दों में कहा था-यहीं से शुरू, यहीं से अंत।

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