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दूसरी बहू को वह मोहल्ला पसंद नहीं आया जहां अम्मा रहती थीं। वह जितने दिनों रही, यही सोचकर शर्मिदा होती रही कि उसकी किसी सहेली ने यहां उसे देख लिया तो क्या होगा? उसने अपने माता-पिता को बहुत कोसा कि लडका तो अच्छा चुना, लेकिन सास भी सही चुनते ताकि साथ चलते हिचक न होती।
तीसरे बेटे को बचपन से ही अपने परिवेश से चिढ थी। पहले वह पढने के बहाने घर से दूर छात्रावास गया, फिर पढाई पूरी होते ही नौकरी के बहाने घर से हमेशा के लिए दूर भाग गया। चौथा बेटा हल्के साथ नहीं रहा तो उसने अम्मा को छोडा भी नहीं। चिट्ठी-पत्री करता, साल-छह माह में दस-पंद्रह मिनट के लिए आकर मिल जाता। अम्मा अभिभूत हो उठतीं। उन्हें लगता कि यूं तो चारों बेटे खर्चे के लिए पैसे भेज कर कर्तव्य पूरा करते हैं, लेकिन छोटा सयाना है, जो कभी-कभार चेहरा दिखा जाता है। एक मां के लिए इतना भी कम नहीं है।
अम्मा घडी की ओर देखती सोच रही थीं कि हल्के की गाडी आ गई होगी कि नहीं.. कि बकरी खुरखुरा कर उठ खडी हुई। अम्मा ने बकरी की ओर देखा। तभी उनकी दृष्टि अहाते के फाटक पर गई, जिसे खोलकर हल्के भीतर आ रहा था। उनका मन खुशी से नाच उठा। अगले ही पल आघात लगा। हल्के अकेला था, साथ में उसकी बीवी व बच्चे नहीं थे।
सफारी सूट पहने बाबू साहब दिख रहे हल्के ने अम्मा के पैर छुए। अब इसे पैर छूना ही कहा जाएगा, वरना हल्के ने अम्मा के पैर के पंजे नहीं, बल्कि घुटने छूकर काम चलाया था। अम्मा के दिल से सच्चे आशीर्वचन फूट पडे और उन्होंने हल्के को सीने से लगा लिया। हालांकि साढे चार फुट की अम्मा सवा पांच फुट हल्के के सीने तक ही आती हैं। लेकिन मां का दिल किसी भी ऊंचाई से ऊंचा होता है। कुछ देर बाद अम्मा ने पूछा, बहू और बच्चे क्यों नहींआए? इस पर हल्के ने बताया कि वे आए तो हैं, लेकिन रेलवे स्टेशन से ही चाची के घर सद्भावना नगर चले गए हैं। यह सुनकर अम्मा को आश्चर्य हुआ। हल्के ने स्पष्ट किया कि बहू को अम्मा के घर का गंवारू माहौल पसंद नहीं है, इसीलिए वह यहां नहीं आई। अम्मा चाहें तो सद्भावना नगर बहू से मिलने चल सकती हैं। अम्मा को ठेस तो पहुंची, लेकिन मां की ममता ने सब कुछ एक ओर सरका कर बेसन के लड्डू आगे रख दिए, जो बडी कठिनाई से खुद बनाए थे। लड्डू बांधते अम्मा के कांपते हाथों को देख हरकिशन की पत्नी ने टोका भी कि जब जांगर नहीं चलती है तो काहे को लड्डू बांध रही हो अम्मा?
लेकिन मां की ममता विचित्र होती है। बुढापे व कमजोरी से कांपते हाथों में भी ताकत भर देती है। हल्के ने सधे स्वर में कहा, अम्मा, तुम्हारी बहू चाहती है कि घर को बेच कर हम सद्भावना नगर में जमीन ले लें।
हल्के की बात सुनकर अम्मा सन्न रह गई। अम्मा की प्रतिक्रिया जाने बिना हल्के ने इतना और कहा कि दो-चार दिन में लिखा-पढी हो जाएगी। एक खरीदार मिल गया है।
अम्मा अवाक रह गई। उनसे पूछे बिना ही खरीदार भी ढूंढ लिया? जिस घर में उन्होंने होश संभाला, जवान हुई, उसी घर को उनसे छीनने की योजना बना ली गई? पुराना और खपरैल वाला सही, लेकिन है तो उनका घर। इसी की भीतर वाली कोठरी में पैदा हुआ था हल्के। बेटा मोह छोड सकता है, लेकिन वह कहां जाएंगी इस घर को छोड कर?
उन्होंने डबडबाई आंख से बकरी को देखा, जो उन्हीं की तरह बूढी हो चली थी। अम्मा को लगा मानो बकरी विनती कर रही हो कि अब चला-चली की बेला में इस घर में मेरा खूंटा तो मत उखाडो! हो सकता है, यह बकरी के नहीं, अम्मा के मन की बात हो, लेकिन अम्मा को यह घर अपने खूंटे की तरह प्रतीत हुआ। उन्होंने इस खूंटे से जीते जी अलग होने की बात भी कभी नहीं सोची। उनका मन दरकने लगा। हल्के ने मनचाहा उत्तर पाने की गरज से अम्मा के हाथ थाम लिए, कुछ दिन किराये के घर में रह लो, फिर सद्भावना नगर में मकान बनते ही वहां चलना। शहर छोडकर नहीं जाना पडेगा तुम्हें। कुछ पल बाद बाद अम्मा ने भावनाओं पर नियंत्रण पाया और थके स्वर में बोलीं, बहू से कहना, कुछ समय की बात है। धीरज धरे, मेरे बाद उसी का है ये सब!
हल्के को ऐसे उत्तर की आशा तो थी, फिर भी उसका हाथ कांपा और अम्मा के हाथ उसके हाथों से छूट गए, लेकिन अम्मा..!
चंद दिनों की ही तो बात है, बेटा! कौन जाने इससे भी पहले..।
तुम बेकार बात करने लगीं। हल्के झुंझलाया। तुम लोग यहीं आकर क्यों नहीं रहते? इतना बडा घर है। ठीक करा लो। अम्मा ने कहा। ये मोहल्ला गंदा व पुराना है। नई कॉलोनियों में अच्छा रहता है। हल्के ने तर्क दिया।
क्या सब पुराना गंदा होता है बेटा? जरा सोचो, जब तुम्हारे बच्चे बडे होंगे, तब तक तुम्हारी वो नई कॉलोनी पुरानी हो चुकी होगी। तुम्हारे बच्चों को भी वह गंदा लगेगा..।
अम्मा तुमसे तो बात करना फिजूल है।
हल्के जाने को उठ खडा हुआ। अम्मा अहाते के फाटक तक पीछे-पीछे गई, लेकिन हल्के ने पलट कर नहीं देखा। वह नाराज था। अम्मा के जी में आया कि अभी कर दें घर बहू के नाम, लेकिन बकरी की याद ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। अम्मा को पता है कि घर बेचने के बाद उन्हें बहू के साथ उसके घर में रहना होगा और बहू के घर में उनकी पुरानी वस्तुओं, परंपराओं और संस्कारों की तरह इस बकरी के लिए भी जगह नहीं होगी। अम्मा भी क्या करें? उम्र के आखिरी पडाव में आकर एक झटके से सब कुछ तो नहीं छोड सकती हैं।
पत्नी हूं कोई खरीदी हुई चीज नहीं ….
हल्के के जाने के बाद अम्मा पलट कर अपनी बकरी के पास आई और उससे पूछ बैठीं, मैंने हल्के से ठीक कहा न? बकरी ने मूक समर्थन किया। इसके बाद अम्मा ने अपने कमरे में पहुंच कर दीवार से घडी उतारी और उसके सैल उखाडकर अलग फेंक दिए। अब अम्मा को घडी देखकर किसी की प्रतीक्षा नहीं करनी थी। जिसे आना था, उसके लिए अम्मा को घडी देखने की जरूरत नहीं थी।
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