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एक अनजान लड़की और अजनबी लड़के की कहानी – Hindi Story (पार्ट -2)

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इस कहानी का पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें

आखिर सात बजे बस आ ही गई। शालू ने दोनों का टिकट लेना चाहा, लेकिन मैंने उसका हाथ पकडकर मना करते हुए परिचालक को पैसे थमा दिए। पानी को चीरती हुई बस आगे बढ रही थी। मेरा मन कल की स्मृतियों में बार-बार डुबकी ले रहा था। थोडी देर में बेरी का बस अड्डा आ जाएगा। यात्री उतर कर अपनी-अपनी राह चल देंगे। हम दोनों भी अलग-अलग रास्तों पर हो लेंगे। क्या कभी हम फिर मिलेंगे? एकाएक मुझे महसूस हुआ कि मैं उससे प्रेम करने लगा हूं और यह मेरा पहला प्रेम था। कहते हैं पहले प्यार को कभी नहीं भुलाया जा सकता। फिर ऐसा सफर, भय, ठिठुरन और साथ के इस सफर को शालू भी कहां भुला पाएगी। मन ने मानो कहा-प्यार का इजहार कर दे। लेकिन दूसरे ही पल संस्कारों ने चेताया, इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं। कहीं वह मुझे गलत न सोच ले। हालांकि मैंने इसका हाथ मानवता के नाते ही थामा था, प्रेयसी समझकर नहीं, लेकिन कब हाथ का भाव बदल गया, मालूम नहीं चला।

हमारा गांव आ गया। दोनों बस से उतर गए। मैंने शालू को घर पर निमंत्रण देते हुए कहा, शालू! आपको डयूटी पर जाना है। उससे पहले मैं चाहूंगा कि आप हमारे घर चलें। आप आराम से फ्रेश होकर तैयार हो लें और फिर मेडिकल जाएं। घर पर मम्मी और भाभी हैं..।

ठीक है, आपने इतना साथ निभाया है तो कुछ देर और सही। लेकिन आपके घर वाले..।

घबराइए नहीं। मैं समझता हूं कि आपको मेरे घर वालों से मिलकर खुशी ही होगी।


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ठीक है, चलिए शालू ने मुसकरा कर कहा। घर में पूरी घटना सुनाई तो मां ने कहा, बेटा अच्छा किया जो तू इसे ले आया। भली लडकी लगती है।

शालू एक घंटे में ही तैयार हो गई और जाने की इजाजत मांगने लगी। फिर मेरे पास आकर बोली, आप मुझे मेडिकल तक छोडकर नहीं आएंगे?

क्यों नहीं, आपको मंजिल तक पहुंचाने का बीडा उठाया है तो मझधार में कैसे छोड दूं। मैं शालू को स्कूटर पर बैठाकर चल पडा। मेडिकल पास आ गया तो शालू ने कहा, यहां से मैं चली जाऊंगी।

मेडिकल तक क्यों नहीं?

नहीं! माफ कीजिए, मुझे देर हो रही है। फिर कभी भी आप..।

ठीक है। अब आपसे मिलना होता रहेगा।


खबरदार जो मेरी मां को बूढ़ी कहा तो….!!


विदा के लिए हाथ हिलाती हुई वह मुसकराती चली गई। मैं खुश था। भीतर की खुशी होंठों और आंखों से छलक रही थी। घर लौटा, दो दिन बीत गए। लेकिन पल भर के लिए भी उसकी सुंदर छवि मेरे मन से विस्मृत नहीं हुई।

दो दिन किसी तरह बीते तो मैं मुलाकात की कल्पनाएं सहेजता शालू से मिलने मेडिकल की ओर गया। वहां किसी के मार्फत शालू तक संदेश पहुंचाया और उसे वार्ड से बुलवा लिया। दूर से उसे आते देख मेरा मन उत्साह से भर गया। मन में कहीं कोई छल-कपट नहीं था, था तो सिर्फ दिली लगाव। दो पल उसके साथ बैठने और बातें करने की तमन्ना।

शालू निकट आकर गंभीर स्वर से बोली, आपने मुझे बुलाया?

हां।

कोई काम है?

नहीं। कोई विशेष काम तो नहीं, लेकिन शालू..।

लेकिन क्या..?

आपसे मिलने की चाहत हुई। इसलिए..।

देखिए आशीष जी..।

आप प्यार से आशू नहीं कहेंगी?

नहीं। मैं प्यार से आशू नहीं, आदर से आशीष ही कहूंगी, क्योंकि आपका नाम आशीष है।

ओह शालू! माफ करना। आपका नाम भी शालिनी है, मैंने भूल से शालू कहा। लेकिन आज आपके चेहरे की वह मधुरता, आंखों से वह अपनापन कहां चला गया है?

वह अपनापन अपनों से ही होता है, आप तो मेरे कुछ नहीं लगते।


एक थी लप्पो – हिन्दी कहानी

लगता है आप नाराज हैं। क्या बात है? कोई गलती हो गई क्या? नहीं, मैं नाराज नहीं हूं, न कोई ऐसी बात है। हां, यह गुजारिश जरूर करूंगी कि कृपया आइंदा मुझसे मिलने न आएं। आपने सफर में मेरी जो मदद की, उसकी मैं आभारी हूं। आपका धन्यवाद करना चाहती हूं, लेकिन प्लीज माफ कीजिए, मुझे बहुत काम है। मैं जा रही हूं।

सॉरी, कहते हुए वह जाने लगी। मैं आश्चर्य से भरा हुआ बरामदे में खडा रह गया। मन ने कहा, एक बार उसे आवाज दे, लेकिन दिमाग ने आदेश दिया- उसे जाने दे, वह नहीं रुकेगी, क्योंकि उसे तुमसे कोई लगाव नहीं। मैं चुपचाप खडा था। मुझे लगा, जैसे वह मेरा सब कुछ लेकर जा रही है और मैं बिलकुल खाली हो चुका हूं। मन इतना भारी हो गया कि खडा रहते न बना। किसी तरह खुद को संभाला और घर को लौट चला, खाली हाथ..।

ओम प्रकाश कादयान


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