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सासू मां का देहांत होते ही नीचे का पोर्शन खाली हो गया। रेवा को सूना लगने लगा पूरा घर। अम्मा के घुटनों में दर्द था तो बेटे के विवाह से पहले ही अपना राजपाट सजा कर नीचे रहने लगी थीं। मिलनसार इतनी कि पूरा मोहल्ला आकर बैठता उनके पास। राजनीति से गृह-कलह तक की चर्चाएं होतीं। घर बैठे-बैठे पूरे मोहल्ले की खबर रखतीं। किसकी बेटी बिना दहेज बडे घर ब्याही गई, कौन बूढा लडकियों पर लाइन मारता पकडा गया, एक-एक समाचार उन तक पहुंचते रहते। सुबह सात से रात आठ बजे तक उनका हेल्पर नंदू रहता, काम ज्यादा होने पर बडबडाता, लेकिन रेवा व रोहन निश्चिंत होकर ऑफिस जाते। अम्मा घर में हैं तो घर सुरक्षित है। जहां इतनी वृद्धाएं एकत्र होती हों, वहां चोर-उचक्के की क्या मजाल कि कदम रख दे।
पत्नी हूं कोई खरीदी हुई चीज नहीं !!
दो वर्ष ही हुए हैं रेवा को बहू बनकर आए हुए। दोनों दीदी भी इसी शहर में नौकरी कर रही हैं। बडी दीदी संयुक्त परिवार में हैं। छोटी का एकल परिवार है, लेकिन उनके बच्चे अब समझदार हो गए हैं। रेवा खुश है, सास मां से भी ज्यादा प्यार देती हैं। और क्या चाहिए! रेवा की शादी के बाद मां अकेली हो गई हैं, बस यही दुख सालता है उसे। दोनों दीदी मां को हर महीने कुछ पैसे भेजती हैं, ताकि उनका खर्च चलता रहे। शादी से पहले रेवा पूरी तनख्वाह मां के हाथ में रखती थी। शादी के बाद सोचा कि हर महीने दो हजार रुपये मां को देगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वह अभी समझ नहीं पाई कि घर में उसका स्थान क्या है। पति रोहन ही घर का खर्च चलाता है। सास अपनी पेंशन से घर का राशन और नंदू की तनख्वाह देती हैं। रेवा अभी नई है, समझने की कोशिश कर रही है। उसे महसूस होता है कि रोहन पैसे से बहुत प्यार करता है। वैसे रोहन इतना विनम्र है कि रेवा के घर के लोग उसकी तारीफ करते नहीं थकते। मां ने उसे सर्वश्रेष्ठ दामाद घोषित कर रखा है। दरअसल वह बहुत व्यवहारकुशल है। शादी घर वालों ने तय की जन्मकुंडली मिलाकर। कुल-गोत्र सब देखा गया। पहला धक्का रेवा को तब लगा, जब रोहन ने हनीमून पर जाने से मना कर दिया। बोला, हमारा तो घर ही हनीमून डेस्टिनेशन है। अम्मा नीचे रहती हैं। ऊपर हम अकेले हैं। ऐसे में क्यों बाहर जाकर पैसे खर्च करें, कहकर वह गूढ ढंग से इतनी जोर से हंसा कि रेवा को भी हंसी आ गई। उसने अपनी इच्छा मार ली..।
शादी के हफ्ते भर बाद ही उसे दूसरा धक्का लगा। शनिवार को रेवा ने सोचा कि संडे वे दोनों पूरा दिन साथ बिताएंगे। नंदू नाश्ता बना देगा। फिर वे घूमने निकलेंगे। मूवी देखेंगे, लंच व डिनर करेंगे, शॉपिंग करेंगे..। रेवा की हसरतें किसी नवविवाहिता जैसी ही थीं। अगले दिन सुबह चाय पीते-पीते रोहन बोला, रेवा, आज मैं दिन भर सोऊंगा, बहुत थकान हो रही है। नंदू से कहकर सब्जियां मंगवा लेता हूं।
रेवा के उल्लास पर मानो किसी ने जग भर ठंडा पानी डाल दिया हो। बुझे स्वर में बोली, हम लोग कहीं घूमेंगे नहीं?
ना बाबा न, मैं बहुत थका हूं। अच्छा रेवा, तुम बैठो तो जरा, कुछ बात करनी है।
रेवा बैठ गई तो रोहन बोला, तुम्हें हर महीने कितनी तनख्वाह मिलती है? बुरी तरह चौंकी रेवा। हफ्ता ही हुआ है शादी को, अभी से इस कदर हिसाब-किताब! क्या अब उसका वेतन भी रोहन रखेगा? उसकी छठी इंद्रिय ने एकाएक उसे सावधान किया। वह झूठ नहीं बोलती, लेकिन जाने क्यों उसे लगा कि सच बोलना महंगा पड सकता है। उसने सोच रखा था कि अपनी तनख्वाह के पंद्रह हजार रुपये में से वह भी दोनों बहनों की तरह मां को हर महीने दो हजार रुपये भेजेगी। थोडी देर सोचने के बाद रेवा बोली, सिर्फ बारह हजार।
रेवा, अभी तक मैं अकेला घर चला रहा था, लेकिन अब हर महीने तुम मुझे सात हजार रुपये दिया करना।
रेवा अवाक रह गई। यह कैसा पति है जो पत्नी से पैसे मांग रहा है। रोहन बोला, सात हजार देने के बाद भी पांच हजार तुम्हारे पास बच जाएंगे। उसमें तुम्हारा आने-जाने का खर्च निकल ही जाएगा..। कहकर रोहन नहाने चला गया और रेवा कुछ क्षण पत्थर सी बैठी रह गई।
नवविवाहित पति भले ही कितना भी प्रैक्टिकल हो, शादी के तुरंत बाद रोमैंस छोड रुपये-पैसे की बात करने लगे तो भला कौन पत्नी इसे सराहेगी। वह आहत हुई थी, लेकिन यह बात किससे कहे। नई शादी में झगडा भी नहीं कर सकती। सभी उसे दोष देंगे। रोहन बहुत विनम्र है, सब यही जानते हैं।
रोहन नहाकर निकला तो फिर हंसते हुए रेवा से बोला, रेवा तुम्हें पता है, मुझे कितना वेतन मिलता है? तो जान लो-बीस हजार और साल में एक महीने का बोनस भी।
इंसेंटिव्ज तो रेवा को भी मिलते हैं, लेकिन समर्पिता पत्नी बनने के बारे में सोचने वाली रेवा ने रोहन को यह बताना उचित न समझा। धीरे-धीरे दो वर्ष होने को आए। रेवा ने रोहन को स्वीकार कर लिया। मन को समझा लिया कि बहुत से अन्य पुरुषों की तुलना में तो वह ठीक है। नशा नहीं करता, लडकियों के पीछे नहीं भागता..। बस यही कमी है कि पैसे को दांत से पकडकर रखता है। वह जानती है कि रोहन को पैसे की जरूरत नहीं है, क्योंकि राशन-पानी व घरेलू हेल्पर के सभी खर्च अम्मा उठाती हैं। घर में सर्वे-सर्वा वही है। अम्मा और रेवा दोनों का ही कोई अस्तित्व नहीं है। किसी को भी बोलने का मौका नहीं देता रोहन। कभी-कभी रेवा को लगता, मानो उसके भीतर आत्मविश्वास की कमी होती जा रही है, पति उस पर इतना हावी है कि वह खुद को भूल रही है, अपनी योग्यताओं को भी भूल गई है।
अम्मा की अंतिम क्रिया निपटा कर सभी चले गए। घर सूना हो गया। यूं तो अम्मा निर्लिप्त स्वभाव की थीं, लेकिन रेवा को उनके रहने से ही घर भरा-भरा लगता था। अम्मा समझदार थीं, बेटे की नस-नस पहचानती थीं। सहेलियों के साथ इसलिए ही उन्होंने अलग संसार बसा रखा था, लेकिन रेवा से वह स्नेह करतीं थीं, उससे बातें करती थीं। नंदू से कहकर उसके लिए बाजार से कुछ न कुछ मंगवातीं, लेकिन कभी रोहन के विषय में चर्चा नहीं करतीं। अम्मा के न रहने से रेवा अकेली हो गई।
..अम्मा की मौत के बाद यह पहला संडे था। रोहन चाय पीते हुए समाचार-पत्र पढ रहा था। अचानक ही उसने नंदू को बुलाया, नंदू, तुझे अम्मा पगार देती थीं। अब मेरे लिए अकेले तीन हजार रुपये देना संभव नहीं। मैं डेढ हजार दे सकता हूं, इतने में यहां काम कर सकोगे?
नंदू का मुंह उतर गया। रेवा भी चौंकी, तो क्या अब नंदू भी चला जाएगा? रोहन बोला, तुम इतने पुराने हो तुम्हें हटाने का सवाल ही नहीं है। फिर भी पूरे दिन तुम्हारा यहां रहना जरूरी नहीं। अम्मा थीं तो उनके लिए किसी का रहना जरूरी था। अब वह तो हैं नहीं, हम सुबह जाकर शाम को घर लौटते हैं। तुम सुबह सात बजे आकर काम निपटा दो और हमारे साथ ही नौ बजे तक निकल जाओ। फिर शाम छह बजे आकर बाकी काम निपटा दो। मैं हर महीने डेढ हजार रुपये पगार दूंगा।
नंदू का मुंह उतर गया, मगर.. डेढ हजार में मेरा गुजारा कैसे होगा? घर में मैं अकेला कमाने वाला हूं।
किसी महात्मा की उदारता सा भाव रोहन के मुंह पर आ गया, तुमने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारा नुकसान करवाऊंगा। मैंने पहले ही तुम्हारी व्यवस्था कर ली है। मेरे एक दोस्त ने अभी-अभी अपना ऑफिस खोला है। वहां दस से पांच की ड्यूटी करो। ज्यादा काम नहीं है, केवल ऑफिस की सफाई करना, कागज इधर-उधर करना और चाय-पानी पिलाना..। दोपहर वहीं की कैंटीन में खाना खा लिया करना। तनख्वाह तीन हजार रुपये मिलेगी। मैं भी तुम्हें डेढ हजार रुपये दूंगा। अब तो ठीक!
नंदू खुश होकर खाना बनाने चला गया तो रेवा बोली, पूरा दिन घर खाली रहेगा?
अरे नहीं। घर को किराये पर रखने के बारे में सोच लिया है। नीचे के पोर्शन के लिए विज्ञापन दे दिया है। देखो, आज के पेपर में छपकर आ भी गया।
उसने पेपर रेवा के आगे बढा दिया। रेवा ने सोचा, रोहन किस तरह योजनाबद्ध तरीके से हर कदम उठाता है। शायद अम्मा के रहते ही उसने यह सब सोच लिया होगा। उसका हर काम दिमाग से चलता है। हफ्ता भी नहीं गुजरा कि घर किराये पर उठा दिया गया। चहल-पहल रहती। रोहन अपनी सूझ-बूझ से खुश रहता। आम के आम गुठलियों के दाम। घर सुरक्षित और महीने में दस हजार हाथ में किराये के रूप में। नौकर भी आधे पैसों में टिक गया। उसे खाना खिलाने, कपडा-लत्ता देने से भी मुक्ति मिल गई। नुकसान वह किसी का नहीं होने देता, यही उसका बडप्पन है…………… इस कहानी का अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें
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