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प्यार कोई खेल नहीं

कहानियां
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Jagran Sakhiकहते हैं कि प्यार अंधा होता है, मगर शादी आंखें खोल देती है। निबंधकार बेकन ने कहा था, जिन्होंने शादियां कीं और बच्चे जने, अपनी किस्मत को उन्होंने किसी अन्य के पास बंधक रख दिया। बेकन आगे कहते हैं कि स्वयं को एक रात में सात साल अधिक अनुभवी बनाना चाहते हो तो फौरन शादी कर लो।


एक दूसरे विचारक का मत है कि जब भी मुझे किसी के विवाह का निमंत्रण मिलता है तो लगता है कि किसी घनिष्ठ मित्र की आत्महत्या का समाचार आया है। सच तो यह कि शादी कैसी भी हो, है सारी मुसीबतों की जड। लव मैरिज और अरेंज्ड मैरिज में यही अंतर है, एक आत्महत्या है तो दूसरी हत्या। बेंसन ने तो यहां तक कहा है, विवाह के इच्छुक पुरुष को मेरी अंतिम राय : अरे मूर्ख! अभी भी समय है, भाग जाओ। कबीर व रहीम जैसे कामयाब लव गुरुओं ने प्रेम को बहुत गंभीरता से शुरू करने की सलाह दी है। वे आशिक और महबूब दोनों को बार-बार चेतावनी देते हैं कि वे प्रेमजाल में न ही फंसें तो बेहतर है, क्योंकि बहुत कठिन है डगर पनघट की। ऐसी चेतावनी हर स्पीड-ब्रेकर से पहले लिखी होती है। स्पीड ब्रेकर वहीं लगाए जाते हैं जहां दुर्घटना की प्रबल आशंका होती है। प्रेम का अर्थ शादी नहीं है, पर हमारे नायक-नायिका प्रेम होते ही शादी के सपने देखने लगते हैं। आज के लवगुरूयही टेक्नीक सिखाते हैं कि प्रेम के मजे लूटो, पर शादी के फंदे में मत फंसो।


तभी तो शादी से बहुत पहले चेतावनी दी जाती है। सात-आठ महीनों तक मंगनी रखी जाती है। भागने की पूरी छूट रहती है। समझदार आदमी चाहे तो शादीशुदा लोगों का सर्वे करके पूछ सकता है कि एक कप चाय की तलब का मारा इंसान चाय का ढाबा खोल ले तो उसकी कैसी दुर्दशा हो जाएगी। शादी के दौरान दूल्हे के हाथ में कंगना बांधते हैं, कमरबंद बांधते हैं, अजीबोगरीब ढीले कपडे पहनाते हैं, सिर पर कांटों के ताज सरीखा सेहरा बांधकर बिदकने वाली घोडी पर बिठाकर सारे शहर में घुमाते हैं। ये सब प्रतीकात्मक लक्षण हैं जो आने वाले बुरे दिनों की सूचनाएं देते हैं कि बच्चू! अब तेरे हाथों-पैंरों में बंधन डाले जा रहे हैं, कल तू अच्छे कपडों के लिए तरस जाएगा। तुझे अडियल व बात-बात में बिदकने वाली नकचढी बीवी के सामने हथियार डालने होंगे। अभी फिल्मी गीत गुनगुनाता है, कल बेकसी का मारा सूरदास के पद गाएगा कि अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल। बटर-नॉन और तिंदूरी टिक्का उडाता है, कल जली-कटी बातों के साथ सूखी रोटी और मसूर की दाल मिलेगी।


अब भी मौका है, समझदार बन और भाग जा। क्षणिक सुख के लिए दुखों की खान का चुनाव मत कर। मगर पे्रम में अंधे आशिक को महबूब के चेहरे के दाग भी डिंपल दिखाई देते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि शादी जैसी त्रासद घटना की मूवी बनती है ताकि व्यक्ति इस आत्मस्वीकृति से मुकर न जाए। बैंड-बाजे बजते हैं, हुल्लड होता है, खाने-पीने की ढेरों चीजें होती हैं, एक-एक आदमी नाचता है, खुशियां मनाता है कि चलो एक और आदमी का हास्य-बैंड बज गया। कोई नहीं सोचता कि बेचारे भले आदमी को आत्महत्या से रोकें। लोग सोचते हैं कि उन्हें शादी-रूपी बर्बादी में जाने से किसी ने नहीं रोका, वे किसी दूसरे को क्यों बचाएं।


कबीर व रहीम प्रेम में कुर्बानी को बहुत अहमियत देते हैं, ये तो घर है प्रेम का खाला का घर नाहिं/सीस उतारे भू धरे, तब पैठे घर माहिं। एक अन्य जगह वे कहते हैं, प्रेम न बाडी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय/राजा परजा जे रुचे, सीस देइ ले जाय। अब जब आशिक अपनी गर्दन काट देगा तो फिर बचेगा कौन। दुनिया में कई तरह के लोग होते हैं, मगर एक विचारक का मानना है कि सिर्फ दो प्रकार के लोग ही पाए जाते हैं। एकवे जिनकी शादी हो चुकी है और दुखी हैं और दूसरे वे जिनकी शादी नहीं हुई और वे दुखी हैं। विवाह में ऐसा ही देखा गया है कि जो चिडिया पिंजरे के अंदर है, वह तो बाहर जाने को उत्सुक है और जो बाहर है, वह कैद होने के लिए उतावली है। शादी वह लड्डू है कि जो खाता है वह तो पछताता ही है, मगर जिसे खाने को न मिले उसे सारी उम्र मलाल रहता है।


पति-पत्नी एक दूसरे पर वैसा ही मालिकाना हक जताते हैं जैसे वे खरीदी हुई जायदाद की तरह एक दूसरे के जर-खरीद गुलाम हों। एक को अगर कोई चीज पसंद तो वह दूसरे पर अपने विचार थोपता है। छोटी-छोटी कमियां बडी-बडी शिकायतें बन जाती हैं और ये कडवी शिकायतें मुसीबतें बनने में देर नहीं लगती। शादी के लड्डू और हनीमून के खरबूजे का जायका बिगडने में देर नहीं लगती, जब एक ही छत के नीचे अपनी तमाम कमजोरियों के साथ रहना होता है। कई बार पहने हुए कपडों की तरह शादी का आकर्षण भी कुछ ही अरसे बाद मद्धम पड जाता है। शायर सही कहता है, नर्म अल्फाज, नए लहजे, भली बातें, पहली बारिश में ही ये रंग धुल जाते हैं। पति आकाश से उतरा हुआ नहीं लगता और न ही पत्नी चौदहवीं का चांद नजर आती है। शादी के बाद ही लडकी को पता चलता है कि दरअसल उसे किस तरह का पुरुष पसंद है, मगर तब तक देर हो चुकी होती है। नौजवान के लिए शादी करना होटल में जाने जैसा है, जहां जाकर उसे लगता है कि काश वह वही मंगाता जो सामने वाले ने ऑर्डर किया है।


प्रेम प्रसंग और विवाह को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां हैं। कोई कहता है कि शादियां तो नीली छतरी वाला तय करता है और पडोसी बिगाडते हैं। कम लोग ही ऐसा जानते हैं कि शादी ऐसा कार्ड है जिस पर कोई गारंटी नहीं मिला करती है। यह तो लाटरी लगने जैसा है। लग गया तो तीर, नहीं तो तुक्का। मियां-बीवी दोनों का मिजाज मेल खा गया तो घर स्वर्ग बन जाता है, वरना सारी उम्र एक-दूसरे को कोसने में ही बर्बाद हो जाती है।


विवाह के बाद के काल को कविता या शायरी में कोई खास तरजीह नहीं दी गई है। शादी के बाद भी मनुष्य के जीवन में कोई रोमांच बचता हो, शायर लोग ऐसा नहीं सोचते। शायद यही कारण है कि शादी के मौकेपर दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। इसके पीछे यही तर्क हो सकता है कि अब वे माला चढी तस्वीर के समान हो चुके हैं, उनके सारे पंख नोच लिए गए हैं और घोडे-रूपी आदमी के मुंह में नकेल लगाकर उसकी डोर पत्नी के हाथ में दे दी गई है। देश-विदेश में जितनी भी महान प्रेमकथाएं हैं, उनमें कोई अच्छी कथा पति-पत्नी के पात्रों पर आधारित नहीं है। जैसे हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट या शीरी-फरहाद। इन सबका अंत मिलन नहीं, बल्कि वियोग में होता है। प्यास में पानी का जो महत्व होता है, प्यास बुझने के बाद पानी में उतनी कशिश नहीं रह जाती। शादी की भी यही त्रासदी होती हो शायद।


शादी के पहले वर्ष सकुचाई हुई दुल्हन कम ही बोलती है। दूसरे वर्ष दूल्हे राजा को ही चुप्पी साध लेनी पडती है। तब उन्हें पता चलता है कि उन्होंने किस मधुमक्खी के छत्ते में हाथ दे दिया। शादी के तीसरे वर्ष लाज-शर्म का पर्दा हट जाता है। मियां-बीवी दोनों अपनी-अपनी ढपली पर अपना-अपना राग अलापते हैं और सुनने को रह जाते हैं मजबूर पडोसी। टॉमस फुल्लर कहते हैं, यह न सोचो कि जिस कोयल से तुम प्यार करते हो, वह विवाह के बाद भी वैसे ही कूकती रहेगी। कोयल भी वसंत ऋतु के बाद अंडे देकर खामोश हो जाती है।


एक नवविवाहित पुरुष हंसता है तो हमें पता होता है कि वह क्यों खुश है। उसे अपने किए का अभी तक पता नहीं चला। मगर जब विवाह के दस वर्ष बाद भी कोई पुरुष हंसता है तो हमें हैरानी होती है, जलन होती है, क्रोध आता है। एक पत्नी ने अपने पति से उत्सुकतावश पूछा कि शादी की सालगिरह इस बार कुछ अलग तरह से कैसे मनाएं तो पति का जवाब था कि दो मिनट का मौन धारण कर लें।

Source: Jagran Sakhi

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